ये पल भी गुज़र जायेंगे ऐसे !



रोशनी जो दबी रही हलकी-हलकी सी 
हौसला देती रही बादलों के दायरे से  
लगा शायद कहीं बादलों से गिरेंगी बूँदें 
जब पंछींयों को भी देखा पनाह लेते हुए 
कुछ देर सोच ने घेर रखा था यूँही मुझे 
शायद किसी और सोच से बचाना था 
पंछियों के घर-बेघर होने की बात से 
जब देखा चुभती हुई किरणें गगन से 
आँखों को चकाचौंद करते हुए रोशन 
एक नयी आशा की किरण जैसे मन में 
बादलों के बीच से निकलकर आयी धुप 
ये कहने के ये पल भी गुज़र जायेंगे ऐसे ! 

~ फ़िज़ा 

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