यमुना के बगैर जीवन ...



वो एक उदास शाम थी जब पता चला उस रात के 
यमुना घर बदलकर चली गई वो मेरे खुशियों का आश्वासन थी 
दोस्त थी वो मेरी हमेशा मदत की उसने, एक बात ठानी थी हो न हो,
ज़िन्दगी में अच्छे दोस्त हों तो सब ठीक होता है अगले दिन काम पर गयी 
और यमुना से बात की चाहती तो थी के वापिस आने को कहूं 
मगर इतना हक़ भी नहीं था, 
बात हुई और एक बड़ी बहिन की तरह सलाह दी फंसना नहीं कभी,
पादरी लाख कोशिशें करेंगे धर्म के उपदेश से परधर्म अवलम्बी करने 
मगर तुम काम पर ध्यान देना खर्चे-पानी के बिल जो देना है 
मेरे उन्मुखीकरण के बाद तो जैसे हफ्ते भर बेकार सी थी 
छुट्टीवाले दिन व्यस्त रहती प्रशिक्षण जो मिल रहा था 
एक कैनेडियन चीनी स्त्री थी जो केशियर प्रमुख थी 
काम करने के दिन अपनी शिफ्ट ख़त्म होने तक प्रशिक्षण देती 
बाद में पता चला वो भारतीय थी कलकत्ता की निवासी थी 
काम करने वाले हफ्ते जन परिवहन प्रातःकाल से शुरू रहती 
सप्ताहांत जन परिवहन की कहानी कुछ अलग थी,
ज़िंदगी निराशाजनक रही यमुना बगैर 
येशु ने तो  ख़ुशी और आजीविका लानी थी मगर अफ़सोस ऐसा नहीं था 
अपने आपको उस छोटे से कमरे में बंद कर अपनी डायरी लिखा करती थी 
कभी घरवालों से अपना दुःख लिखती छह पन्नों से भरा पत्र 
उसे फाड़कर फ़ेंक देती क्यूंकि चाहती नहीं के पत्र उन तक पहुंचे  
परिवारजनों को अपनी तकलीफों से वाकिफ करना अच्छी बात नहीं 
क्यूंकि इन बातों से उनका भी दिल दुखी होगा और इतनी दूर रहकर फ़िक्र होगी 
तो क्या करोगे तुम? जियो अपने ही कष्ट में तुम !

~ फ़िज़ा 

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