इंसान !!!

हादसों के मेले में कुछ यूँ भी हुआ कुछ लोगों ने मुझे पुकारकर पुछा कहाँ से हो? किस शहर की हो? नाम से तो लगती हो हिंदुस्तानी जुबान से कुछ पाकिस्तानी उपनाम से लगे विदेशी से शादी? कौन हो तुम? और कहाँ से हो तुम? हंसी आगयी नादानी देखकर फिर थोड़ी दया भी आयी सोचकर क्या हालात हो गयी है सबकी बिना धर्म, जाती के जाने नहीं पहचाने अपनी बिरादरी क्या में नहीं हूँ इंसान जैसे तुम हो? क्या नहीं हैं मेरे भी वही नैन -ओ- नक्श ? क्या बोली नहीं मैंने तुम्हारी बोली? फिर चाहे वो हो मलयालम, हिंदी, उर्दू पंजाबी, मराठी, या अंग्रेजी ? इंसान हूँ जब तक रखो आस-पास रखो दूर हटाकर मुझको जब हो जाऊं मैं हैवान!!! बंद करो ये ताना -बाना जाती-भेदभाव का गाना चोट लगने पर तेरा मेरा सबका अपना खून एक सा दुखती रग पे हाथ रखो तब दोनों आखों में आंसू एक समान सा फिर कैसा भिन्नता तेरा-मेरा चाहे हो तुम राम, या रहीम या फिर हो ब्राहमण या शुद्र पैदा होने पर कि...