Monday, May 15, 2006

तसनिफ हमें आ गई

तसनिफ हमें आ गई -छोटा मुहँ बडी़ बात लेकिन ये हौसला मुझे मेरे चाहने वालों से मिला है। इसिलाह की मुंतजी़र

तुम से तो जैसे मैं कल ही मिली थी
फिर कैसे ये दिल की कली खिल गई?

मैंने तो चँद लम्‍हें ही गुज़ारे थे
किस घडी़ क्‍या हुआ, दिल की गिरह खुल गई

गुफ्‍तगू में तुम से तो मैं संभली हुई थी
फिर किन इशारों से आँखें जु़बान बन गई

चँद लम्‍हों की बातें तसकिन बन गईं
ऐसी जादुगरी की, तसलिम हमारी मिल गई

दूर हुँ तुम से कोसों दूर अकेली

तस्‍वीर तुम्‍हारी मुझे राहत दे गई

क्‍यों मैं करने लगी मुहब्‍बत तुम से

यही परेशानी एक मेरी रेह गई

कुछ भी केह लो, यही मैंने जाना सनम

दिल तुम्‍हारा हो गया, मैं पराई रेह गई

देख लो प्‍यार में हम गाफि़ल रेह गये
कुछ भी केह लो तसनिफ हमें आ गई ;)


गिरह= Knot
तसकिन=comfort/satisfaction
तसलिम=Acceptance/Acknowledgement
गाफि़ल=careless/negligent

तसनिफ=writing

~फिज़ा

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...