Monday, January 28, 2019

मुझे ढूंढ़कर आये थे कुछ लोग ...!


मुझे ढूंढ़कर आये थे कुछ लोग 
जब इतिहास के पन्नों से पलटे 
कहानियां वीरों और वीरता की 
अनायास मस्तिष्क की नज़रें गयीं 
ढूंढ़ती स्कूल से उस कक्षा की ओर 
कक्षा छात्र-छात्रों से भरा हुआ था 
बुंदेले हरबोलों के मुंह से न सही 
अपनी टीचर के मुंह से सुन रहे थे 
सन सत्तावन की मर्दानी जो लड़ी थी 
झाँसी वाली रानी थी !
सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते अकस्मात 
सोच में पड़ जाते थे काश! उस वक्त 
हम भी उस सेना में भर्ती हो पाते थे 
मर्दानी जैसी न सही साथ उसका देते थे 
ऐसे वीर कहानियों से हौसले बुलंद होते 
स्कूल की घंटी बज भी जाती फिर भी 
मस्तिष्क में, खूब लड़ी मर्दानी वाली 
कविता याद आ जाती थी
किसी तरह वो स्वतन्त्र की चिंगारी 
हमरे अंदर भी जला जाती थी !
मुझे ढूंढ़कर आये थे कुछ लोग 
यूँही ख्यालों और ख्वाबों में वो लोग 
जो मातृभूमि के लिए वीरगति पा गयी थीं !!

~ फ़िज़ा 

Monday, January 14, 2019

हरियाली फैलाते ये बूँदें...!


ज़मीन पर गिरतीं हैं बूँदें 
जाने कितने ऊंचाइयों से 
कितने सपने संग लिए 
क्या-कुछ देने के लिए 
मचलती छलकाती हुई 
एक से दो, दो से हज़ार 
लड़ियाँ घनघोर बरसते 
कहलाते बरखा रानी 
जो जब झूम के बरसते 
ज़मीन को मोहित करते 
पेड़ों-गलियों में बसकर 
फूलों के गालों को चूमकर 
रसीले भवरों से बचाकर 
जैसे-तैसे गिरकर-संभलकर 
हरियाली फैलाते ये बूँदें 
कभी वर्षा, कभी वृष्टि 
बनकर सामने आते !

~ फ़िज़ा 

Thursday, January 03, 2019

ये सर्दियाँ मुझे बांध रखतीं !


सबकुछ तो अच्छा ही है 
हर तरफ ये हरियाली है 
बस, इन सबको देखूं मैं 
सुकून से और आराम से 
न कहीं जाने की जल्दी 
किसी के आने का भरम 
खाने की सुध नहीं जहाँ 
वक्त के अधीन नहीं वहां 
बस मैं और मेरी तन्हाईयाँ 
सुकून का आलंबन हो जहाँ 
मैं, फ़िज़ा और तुम वहां 
ऐसी कुछ आलस से भरी  
ये सर्दियाँ मुझे बांध रखतीं 
सबकुछ तो अच्छा ही है 
दिल घर-सीमित चाहता है 
छुट्टिंयों के कुछ लक्षण हैं 
कम्बल में सिकुड़ना चाहता है 
सबकुछ तो अच्छा ही है 
अब कुछ आराम चाहता है !

~ फ़िज़ा 

Wednesday, January 02, 2019

हर दिन एक नया चैप्टर हो !




क्या है ये नया साल ?
सब क्यों उतावले हैं ?
क्या कुछ बदल गया ?
क्या बदलने वाले हो ?
वही घिसेपिटे संकल्प दिखाने
के ?
जो कभी होते नहीं
पुरे ?
फिर भी एक लम्बी
सूचि बनती है
हर साल और हर बार
सूचि लंबी होती है
जब सबकुछ कल पर
छोड़ा है तब
नए साल और नया परिवर्तन
का हंगामा क्यों?
बेकार के ढकोसले, बेकार
के सब ड्रामे
बेफिक्र होकर हर पल
को जियें
मोहब्बत करने से न
कतराएं
ख़ुशी हाथ आये न आये,
दें ज़रूर किसी को
न कोई लिस्ट हो
न उसे पूरा करने का
स्ट्रेस हो 
बस हर दिन एक नया
चैप्टर हो !

~ फ़िज़ा

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...