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ज़िन्दगी यही है और कुछ भी नहीं...

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खुद  में जब कोई खामियां है  ये जानलो तो लुटा दो सब कुछ  उन खामियों को बदलने में  ऐसा ही कुछ हुआ था मेरे संग  जब टेलीमार्केटिंग में औरों के मुकाबले मैं कम थी परिश्रम से  एक अच्छी बिक्री प्रतिनिधि बनी  जहाँ मेरी नौकरी ४ बजे से ११ थी  वहीं मुझे दो-तीन और काम मिले  अब मैं सुबह ८ बजे से ११ बजे तक  काम ही काम, अलग-अलग उत्पाद  उत्पाद में विश्वास हो तो काम आसान  हर उत्पाद बिकने लगा वो भी तादाद में  शायद मेरे ख्वाब में भी न सोचा हो मैंने  क्रेडिट कार्ड से लेकर बीमा तो बिजली  लम्बी दुरी पर फ़ोन करने के पैकेज  ये चीज़ें कोई खरीदेगा? वो भी फ़ोन पर? ताज़्ज़ुब की बात है मगर सही कहा है  दिल से दिल को राह होती है सही में ! एक मजले से दूसरे मजला और फिर  सारे ऑफिस में मैं जानी-पहचानी हुई  कई दोस्त बने कई प्रशंसक भी हुए  कितनों ने दिल दिए और कितने टूटे  कामियाबी खुशियां लाती हैं मोहब्बत भी  ज्यादा की उम्मीद तब भी नहीं थी  ज़िन्दगी ज़िंदाद...