आज यूँ ही बहुत देर तक सोचती रही
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
जहां मैं जाना चाहूँ !
कितनी बेड़ियां हैं
पैरों पर कर्त्तव्य के
तो हाथ बंधे हैं
उत्तरदायित्व में
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां !
पूछते सभी हरदम
क्या करना चाहोगी
गर मिला जो मौका
सोचने से भी घबराऊँ
क्यूंकि दाना-पानी
खाना -पीना जीवन की कहानी
फिर दिल की रजामंदी
कैसे होगी पूरी
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
जहाँ जरूरतों में
बाँटू प्यार -मोहब्बत
दूँ मैं औरों को हौसला
दो निवाला मैं भी खाऊँ
दो उनको भी दे सकूं
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
~ फ़िज़ा