Wednesday, January 29, 2020

आज़ादी !



उसकी आँखों से सब बयां था 
वो चीख चीख कर कहा रही थीं 
आज़ादी आज़ादी चाहिए आज़ादी 
हर रीति-रिवाज़ों से, 
आज़ादी !
नौकरी और घर की चाकरी से 
आज़ादी !
बच्चों से उनकी जिम्मेदारियों से 
आज़ादी !
रोज़-रोज़ के बिलों से 
आज़ादी !
इस दिल से भी चाहिए 
आज़ादी !
सब रिश्तों से भी 
आज़ादी !
इंसान न समझे उस समाज से 
आज़ादी !
बस हुआ सभी से अब 
आज़ादी !
फिर भी उसके हाथ फौलादी 
करते रहे परिश्रम आखिर तक 
सिर्फ चाहने से कहाँ मिले हैं 
आज़ादी?

~ फ़िज़ा 

Wednesday, January 08, 2020

हिंसा नहीं आवाज़ से विरोध करते हैं !



सहने को तो लोग यूँ भी दर्द सहते हैं
एक हद्द से ज्यादा हो तो काट देते हैं 
इलाज़ भी देखिये कभी ऐसा होता है !
जुल्म का आलम देखिए कैसा होता है 
सहते तो सब हैं मगर उसकी भी हद्द है 
हिंसा नहीं आवाज़ से विरोध करते हैं !
जानें, शासन करने वाला भी इंसान हैं 
शासन में लाने वाला भी इंसान ही है 
देखिये,एकता में सत्ता पलटने की ताक़त है !
अनपढ़ शासक अन्धविश्वास जैसा है 
सच को छुपाना और सब बहकावा है 
पढ़े-लिखे बेहके दुःख इसी बात का है !
वक़्त आगया अब एकजुट हो जाना है 
खुली आँख है मगर हकीकत दिखाना है 
खाली करो सिंहासन जनता को जगाना है !
इंसान बनकर इंसान को शासन करना है 
जब शासक ही शोषण करें तो डटना है 
निडरता से आज़ादी का नारा लगाना है !
हम देखेंगे किसका पलड़ा अभी भारी है 
क्रांति भी क्या इसी विरोध का चेहरा है 
अब बहुत हुआ, शासन नए नस्ल की है 
नयी सोच से सबका भला होना है !

~ फ़िज़ा

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...