Wednesday, January 29, 2020

आज़ादी !



उसकी आँखों से सब बयां था 
वो चीख चीख कर कहा रही थीं 
आज़ादी आज़ादी चाहिए आज़ादी 
हर रीति-रिवाज़ों से, 
आज़ादी !
नौकरी और घर की चाकरी से 
आज़ादी !
बच्चों से उनकी जिम्मेदारियों से 
आज़ादी !
रोज़-रोज़ के बिलों से 
आज़ादी !
इस दिल से भी चाहिए 
आज़ादी !
सब रिश्तों से भी 
आज़ादी !
इंसान न समझे उस समाज से 
आज़ादी !
बस हुआ सभी से अब 
आज़ादी !
फिर भी उसके हाथ फौलादी 
करते रहे परिश्रम आखिर तक 
सिर्फ चाहने से कहाँ मिले हैं 
आज़ादी?

~ फ़िज़ा 

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