सहने को तो लोग यूँ भी दर्द सहते हैं
एक हद्द से ज्यादा हो तो काट देते हैं
इलाज़ भी देखिये कभी ऐसा होता है !
जुल्म का आलम देखिए कैसा होता है
सहते तो सब हैं मगर उसकी भी हद्द है
हिंसा नहीं आवाज़ से विरोध करते हैं !
जानें, शासन करने वाला भी इंसान हैं
शासन में लाने वाला भी इंसान ही है
देखिये,एकता में सत्ता पलटने की ताक़त है !
अनपढ़ शासक अन्धविश्वास जैसा है
सच को छुपाना और सब बहकावा है
पढ़े-लिखे बेहके दुःख इसी बात का है !
वक़्त आगया अब एकजुट हो जाना है
खुली आँख है मगर हकीकत दिखाना है
खाली करो सिंहासन जनता को जगाना है !
इंसान बनकर इंसान को शासन करना है
जब शासक ही शोषण करें तो डटना है
निडरता से आज़ादी का नारा लगाना है !
हम देखेंगे किसका पलड़ा अभी भारी है
क्रांति भी क्या इसी विरोध का चेहरा है
अब बहुत हुआ, शासन नए नस्ल की है
नयी सोच से सबका भला होना है !
~ फ़िज़ा
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