जब भी घर लौटते है
बचपन आ जाता है
आज और कल के
झलक दिख जाते है
समय ये ऐसा ढीट है
एक जगह ठहरता नहीं
बीते कल और आज में
ये एक पल स्थिरता के
फिर ढूंढ़ता रहता है
मैं कौन हूँ ? क्यों हूँ?
इन सवालों के जवाब
तब भी और अब भी
ज़ेहन में घूमते रहते हैं !
~ फ़िज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
जब भी घर लौटते है
बचपन आ जाता है
आज और कल के
झलक दिख जाते है
समय ये ऐसा ढीट है
एक जगह ठहरता नहीं
बीते कल और आज में
ये एक पल स्थिरता के
फिर ढूंढ़ता रहता है
मैं कौन हूँ ? क्यों हूँ?
इन सवालों के जवाब
तब भी और अब भी
ज़ेहन में घूमते रहते हैं !
~ फ़िज़ा
आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...