Saturday, March 26, 2022

कल और आज

 


जब भी घर लौटते है 

बचपन आ जाता है 

आज और कल के 

झलक दिख जाते है  

समय ये ऐसा ढीट है 

एक जगह ठहरता नहीं 

बीते कल और आज में 

ये एक पल स्थिरता के 

फिर ढूंढ़ता रहता है 

मैं कौन हूँ ? क्यों हूँ?

इन सवालों के जवाब 

तब भी और अब भी 

ज़ेहन में घूमते रहते हैं !


~ फ़िज़ा 

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...