Friday, August 19, 2022

कोवीड इस अचूक से आ मिला !




 सकारात्मक  होना क्या इतना बुरा है ?

के कोवीड भी इस अचूक से आ मिला 

जैसे ही हल्ला हुआ के मेहमान आये है 

नयी दुल्हन की तरह कमरे में बंद हो गये 

स्वर्णयुग से नहीं थे जो छुईमुई बन जाते 

काम-सपाटा ऑफिस का खत्म कर जल्दी 

चले निद्रा को पकड़ने 

या हो गए उसके हवाले 

जो भी था 

फिर तांडव रचा कोवीड ने अंदर 

घुसा तो कहीं से भी हो मगर

स्वयं स्थिर हुआ 

राज रचा मस्तिष्क पर जैसे कोई प्रयोगशाला 

जो भी हो रहा था 

सब कुछ नज़र आ रहा था 

जाने क्यों सपना हकीकत 

नज़र आ रहा था 

मृत्यु , 

मरना सिर्फ इस लोक के लिए है 

वहां तो ये एक दरवाज़ा है 

जहाँ से निकले 

तो फिर मैं न मैं रहूं 

और

मैं भी न जानू मैं कौन हूँ ?

~ फ़िज़ा  

Saturday, May 21, 2022

ख़ुशी

ज़िन्दगी के मायने कुछ यूँ समझ आये 

अपने जो भी थे सब पराये  नज़र आये


सफर ही में हैं और रास्ते कुछ ऐसे आये 

रास्ते में हर किसी को मनाना नहीं आया 


कुछ पल ही सही हम सब जहाँ में आये 

सिर्फ दूसरों को मनाने खुश करते रह गये 


वक़्त के संग कुछ तज़ुर्बे ज़िन्दगी में आये 

वक़्त ज़ाया न करो इन में ये समझ आये


जिसका होना है वो हर हाल में हो जाये 

दोस्त इन चोचलों के झांसे में क्यों आये? 


ज़िन्दगी कई मौके दे -दे कर यूँ समझाये 

खुद की ख़ुशी की खुदखुशी न हो जाये 


~ फ़िज़ा 

 

Sunday, April 03, 2022

दिल की मर्ज़ी


 

खूबसूरत हवाओं से कोई कह दो 

यूँ भी न हमें चूमों के शर्मसार हों 

माना के चहक रहे हैं वादियों में 

ये कसूर किसका है न पूछो अब 

बहारों की शरारत और नज़ाकत 

कैसे फिर फ़िज़ा न हो बेकाबू अब 

सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने 

दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की

आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह 

फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो 


~ फ़िज़ा 

Friday, April 01, 2022

सेहर


 सुबह की सर्द हवाओं से 

एक हलकी सी मुस्कान 

जैसे सूरज की किरणें 

फैलतीं हैं रौशनी ऐसे 

लगे गुलाबी सा गाल 

एक सादगी और शर्म 

दोनों ही साथ रहकर 

नज़रों को बेहाल करे 

पहली मोहब्बत का 

नज़ारा सेहर दिखाए 


~ फ़िज़ा 

Saturday, March 26, 2022

कल और आज

 


जब भी घर लौटते है 

बचपन आ जाता है 

आज और कल के 

झलक दिख जाते है  

समय ये ऐसा ढीट है 

एक जगह ठहरता नहीं 

बीते कल और आज में 

ये एक पल स्थिरता के 

फिर ढूंढ़ता रहता है 

मैं कौन हूँ ? क्यों हूँ?

इन सवालों के जवाब 

तब भी और अब भी 

ज़ेहन में घूमते रहते हैं !


~ फ़िज़ा 

Sunday, January 23, 2022

ज़िन्दगी का नाम है चलना


ज़िन्दगी का नाम है चलना 

बाकि सब नियति का खेलना 

कुछ प्यारी ज़िन्दगी का जाना 

कुछ प्यारी ज़िन्दगी का आना 

मगर यादों की पुड़िया बनाना 

वही है आखिर में रहा जाना 

क्यूंकि जीवन का नाम है जीना 

जीवनदान का दें हम नगीना  

हर ज़िन्दगी न हो पाए बचाना 

एक ज़िन्दगी ही सही, रचना 

ज़िन्दगी का नाम है चलना !


~ फ़िज़ा  

Wednesday, January 05, 2022

उसके जाने का ग़म गहरा है

 

जिस बात से डरती थी 

जिस बात से बचना चाहा 

उसी बात को होने का फिर 

एक बहाना ज़िन्दगी को मिला 

कोई प्यार करके प्यार देके 

इस कदर जीत लेता है दिल 

न हम जी पाते हैं उसके बगैर 

मरते हैं पर उसकी हर अदा पर 

ज़िन्दगी जीने का एक बहाना 

जो देती है सभी को हर पल 

उसके जाने का ग़म गहरा है 

जिस कदर वो नस-नस में बसी 

मुश्किल है इस दर्द की हद पाना 

ज़र्रे-ज़र्रे में है यादों का नगीना  

समझ न आये उसके जाने का 

या फिर उसके ज़िंदादिली का 

जश्न मनाएं !?!


~ फ़िज़ा  

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...