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Showing posts with the label इंसानियत

मौसम की तरह वो बहार बनके आया

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मौसम की तरह वो बहार बनके आया खिलता हुआ तो कभी फलता हुआ आया जिसे देखता वो उन्हें अपने पास लाता गया  मिलनसार था वो मौसमों की तरह लेहराता गया  फिर ना चाहते एक वो मौसम भी आया  पतझड की तरह वो उसे भी साथ ले गया  दरख्त की तरह तो दरस की तरह यादें छोड़ गया  बैठें हैं उसकी छाँव में आज यादें ही सिर्फ  रेहा गया  ~ फ़िज़ा 

मैं भी हूँ एक इंसान...!!!

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मुझे कुछ केहना है  हाँ, मुझे भी कुछ केहना है  कब तक ये दौर चलेगा जहां तुम कहोगे और  मैं  सिर्फ आदेशों का पालन करूँगी? कब तक तुम सही कहोगे और  मैं  हामी भरूँगी ? मैं भी एक इंसान हूँ हाड़-मांस की बनी जीवि हूँ  मुझे यूं ना नकारो के मैं कुछ भी नहीं हूँ.... मैं भी इंसान हूँ, सिर्फ फरक ये है  मैं बच्चे  जनती  हूँ साल के दसवे महीने में  कभी जल्दी भी मेरी तबियत की हैसियत से तुम्हारे हर नाज़ों-नखरों को सर-आँखों पर रख मैं मुस्कुराती हूँ ताके तुम गर्व से लोगों पर रोब जमा सको लेकिन जब मेरी सुनी को अनसुनी करो तब मैं भी केहना चाहूंगी और मुझे भी कोई सुने  क्युंके मैं भी एक इंसान हूँ तुम्हारी तरह  हाड़-मांस की बनी एक नन्ही जान किसी के अंचल में  पली -बड़ी  किसी की लाडली बेटी तो किसीकी बेहन  किसी की दोस्त तो किसी की सखी हूँ मैं  मेरे रगों में भी वोही खून दौड़ता है जो तुम्हारे  मेरा भी कोई अभिप्राय है, मेरा भी कोई अस्तित्वा  सब सेहाती हूँ प्यार के खातिर वर्ना लोग मु...

Kaati hai ulfat mein yun zindagani...

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Kaati hai ulfat mein yun zindagani Har shaks nasihat de samajh nadani Khaomshi se kaat rahe zindagi ka charkha Na jaane kyun log kaath rahe sooth apna Har koi eham ka pala-badha akkal se Sochne ka waqt raha ab kisko-kis se Hoti hai yun bhi ulfat ke afsaane Pyaar se do lafz keha lo lage uktaane Ganimat hai samajhta nahi uske tevar Tum nahi badloge yehi socha der-saver Waqt aagaya hai ‘fiza’ kamar kaslene ka Ek aur baar sahi sarfaroshi ki tammana ka ~ fiza

Ek Phul...

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Swantantrata diwas ki shubhkamnayein doston...ye ek iss tarah ki azaadi hai jahan desh per mar-mitne ke liye kisi ki bhi ijazat nahi leni padti ...aise hee jasbaat ubhar kar nikale jab desh-premiyon aur shaheed jawano ko yaad kiya aur shradhanjai arpit kiya... Ek phul jo toot ke gira Ladkhadata hua ja atka Tehaniyon per Aandhiyon ke jhokon mein Na phanskar Woh phir gira vahan se Lekin, Patton ke beech ja phansa ab ke Jaanwaron ne bhuk mitayee Patton ke sang woh phul Phir Kaheen Chip gaya aur leharata hua Oos waqt path par ja gira Jab shaheedon per mitti dali gayee!!! ~ fiza

Har taraf yehi rona hai

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Aajkal rishte naaton mein itne tanaav aur tanz paaye jaate hein ke bas...dil kehata hai band karo iss rasmon -rivaazon ko aur khuli azaadi mein jiyo... Har taraf yehi rona hai Har patni ka pati ko rokna hai Jo Patni Jeene de Pati ko Woh osi per nirbhar reha jana hai Har taraf yehi rona hai Har Patni ka pati ko rokna hai Jeene se, khush hone se Jahan Jo Jukha waheen woh phansa sadgi aur apnaiyat ki dastaan kitaabon mein bhali lage hai Har taraf yehi rona hai Har Patni ka Pati Ko Rokna Hai Tu-Tu, Mein - Mein Ki Ye Hodd Kab kahan tak rukegi kahan tak chalegi Ahamkaar ki justazoo mein kahan tak Bacchon ki bali chadhayee jayegi Har taraf yehi rona hai Har Patni ka Pati ko Rokna Hai Shayad woh waqt aagaya hai Jahan rasmon se umeed uth gaya hai Patni aur Pati ka roop mitt gaya hai Ek bhayanak sapna sa umeed kho gaya hai Har taraf yehi rona hai Har Patni ka Pati ko Rokna hai Chalo milkar ye jahan sajayein Pyaar se bhari na umeedi ki Jahan tum se kuch na maangein Jee bharkar tumhein chaahein Ha...

हम कहाँ के हैं इंसान....?

आज दिल कुछ बोझल सा है ये दिल भी कितना नादान है....जाने कब की लिखी बातें होतीं हैं और इस पर असर कर जातीं हैं ऐसा ही कुछ दिल का हाल है....वाकई में हम कहाँ के इंसान हैं...जो कभी किसी के बारे में सोचते ही नहीं आज ऐसे ही कुछ बातों को लेकर...एक दिल झंझोडने वाली कविता पेश ए खिदमत है.... उमर ढलती जा रही है जिंदगी शरमा रही है इस मकान की चौखट से माँ ये गाना गा रही है सामने लेटा है बचचा और वो सुला रही है बरतनों में सिरफ पानी आग पर चढा रही है बासी रोटियों के टुकडे समझकर अमरित खा रही है सामने बडा सा घर है जिस से रोशनी आ रही है खूब हंगामा मचा है मौसगी बहार आ रही है साज् पे थरकते लोग मगरिब जिला पा रही है हम कहाँ के हैं इंसान समझ कयों नहीं आ रही है ? ~ फिजा

कौन हुँ मैं ?

कभी ऐसा हूआ है आपके साथ जब कोई...आपकी हुनर को, आपकी अदा और नेक नियती को पसंद करने लगता है तो वो आप से आपके धरम, भाषा और आढंबरी बातों के विषय में पुछने लगता है...? मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ...और मेरे मन में जो भी कशमकश थी उसे कुछ ऐसा रुप दिया....उममीद है बात की हकीकत को आप जानेंगे और उसकी विडंबना को मेहसुस करने की कोशिश आप करेंगें.... आपके राय की मुनंतजीर..... :) भीड में युहीं हम टेहल रहे थे ये सोच कर के हम अकेले हैं चलते गऐ हम बस चलते गऐ न जानते हुऐ के मंजर किधर है मौसगी का तकाजा था जो हम भी थे कुछ बेहके बेहके से के अचानक से लगा जो हम अकेले से थे कोई साथ हो लिया हाथ हमारा पकड के इस दोसती को मेहसुस ही कर रहे थे के भीड से ये आवाज आई "कौन हो तुम, कया जात हो तुम कहाँ से आये और कया चाहते हो तुम?" अचानक ही सब थम सा कयों गया ये जो लुतफ है इसे उठाने कयों न दिया साकी की खुशी मना भी न सके के "फिजा" ये सवाल उठ खडा हो गया कया मैं ऐक इंसान नही हुँ? कया सिरफ इतना नही है जरुरी? इनही खयालात में हम फिर खो गये भीड में अकेले हम!!!! ~फिजा