Wednesday, January 06, 2021

बस ढूंढ़ती फिरती हूँ

 



मोहब्बत सी होने लगी है अब फिर से 

लफ़्ज़ों के जुमलों को पढ़ने लगी हूँ जब से 

जाने क्या जूनून सा हो चला है अब तो 

बस ढूंढ़ती फिरती हूँ उस शख्स के किस्से 

अलग ही सही कुछ तो मिले पढ़ने फिर से

एक दीवानगी सा आलम है अब तो ऐसे 

जब से पढ़ने लगी हूँ एक शख्स को ऐसे 

~ फ़िज़ा  

Saturday, January 02, 2021

नये साल की शुरुवात...!


नये साल की शुरुवात कुछ इस ढंग से मैंने की 

प्रकृति के साथ और कुछ युवाओं के संग हुई 


कहते हैं पानी में रहकर मगर से न रखो कभी बैर 

सोचकर शामिल हुए बच्चों की टोली में करने सैर 


जंगलों में करने विचरण प्रकृति से कुछ बतियाने 

जीवन की तरह कुछ टेढ़े-मेढ़े मिले रास्ते राह में 


बिन मौसम बदलते पलछिन हरियाली झुंड पेड़ों के 

फिसलते ओस से लतपत मोड़ छत्रक सजीले छाल 


शुष्क हवाओं में सांस लेते हुए खुशगवार ये पल 

कैद किये यूँ इस साल फ़िज़ा ने कोरे कागज़ पर 


~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...