बस ढूंढ़ती फिरती हूँ

 



मोहब्बत सी होने लगी है अब फिर से 

लफ़्ज़ों के जुमलों को पढ़ने लगी हूँ जब से 

जाने क्या जूनून सा हो चला है अब तो 

बस ढूंढ़ती फिरती हूँ उस शख्स के किस्से 

अलग ही सही कुछ तो मिले पढ़ने फिर से

एक दीवानगी सा आलम है अब तो ऐसे 

जब से पढ़ने लगी हूँ एक शख्स को ऐसे 

~ फ़िज़ा  

Comments

Dawn said…
@अनीता सैनी :आपका बहुत शुक्रिया मेरी रचना को अपनी शृंखला में शामिल करने का
आभार
वाह!
क्या बात।
Abhilasha said…
बहुत ही सुन्दर रचना
Dawn said…
@सधु चन्द्र : shukriya aapka

@Abhilasha : behad shukriya aapka


Abhar!

Popular posts from this blog

हौसला रखना बुलंद

उसके जाने का ग़म गहरा है

दिवाली की शुभकामनाएं आपको भी !