लगता है जैसे हँसते हैं इंसानों पे !
जहाँ खुला आसमान उड़ते पंछी देखूँ
लगता है जैसे हँसते हैं इंसानों पे !
वक़्त ऐसा आ चला है जहाँ पर
बिना पिंजरे के बंधी बने हैं लोग !
अब तो हालत ऐसा है जनाब
जाना चाहो वापस जाने न दें !
किसी के विरुद्ध क्या बोलोगे अब
कुछ कहने से पेहले ही बोलती बंद !
कटुक नीबूरि कहाँ कनक कटोरी
पिंजर बंध कनक तीलियाँ भी नहीं !
खूब हंसो तुम पंछी खूब हंसों
पैरों पर जो मारी है कुल्हाड़ी !
~ फ़िज़ा
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