Sunday, March 29, 2020

देखो न छूना न मुझे यूँही तुम


देखो न छूना न मुझे यूँही तुम 
कहीं प्यार के बहाने दे न दो 
मुझे कुछ तोहफे में वायरस
जो  मुझे रखे दूर तुम से भी 
और मेरे सभी अपनों से भी  
मैं भी खो  दूँगी मेरा सवेरा 
मेरा आसमान ज़मीन साया 
खुदा आज़ादी कारण्टीन से 
कहीं आजीवन बंदी न बना दे 
हुज़ूर मेरे तस्सवुर की कसम है 
मुझे ख़यालों में चाहो दिल में
मगर छुओना इस कदर के मैं 
रहूं  दूर  इस  जहाँ से भी और 
जाऊ यूँही बिना वजह हुज़ूर  !

~ फ़िज़ा 

Saturday, March 21, 2020

आओ संग दूर बहुत दूर हमें जाना है


दूर बहुत दूर मुझे जाना है 
बादलों के उस पार जाना है 
सफर लम्बा है मगर हौसला है 
कठिन रास्ते दूर मंज़िल जाना है 
ज़िन्दगी के खेल में चलते जाना है 
संग साथ हों तो सफर चल जाना है 
आओ संग दूर बहुत दूर हमें जाना है 

~ फ़िज़ा 

Tuesday, March 17, 2020

कॅरोना ने आज सभी को ज़ब्त कर लिया


बचपन में सुनी थी कई कहानियां 
कभी नानी कभी मासी की ज़ुबानियाँ 
जब पड़ा  पृथ्वी पर ज़ुल्म की बौछारियाँ  
और कई कारणवश हुए भी बरबादियाँ 
तब निःसंवार करने पैदा हुए अवतरणियां 
काल का क्या बदलना है समय के साथ 
और इंसान की बदलती नियति के समक्ष  
बिगड़ने लगा संतुलन और संयम प्रकृति का 
एक बलवान रूप विषाणु हुआ पैदा इस बार 
लगा मचलाने इंसान को हर कोने-कोने पर 
रंगीला, फूलों सा सुन्दर खिला-खिला सा 
नाम जिसका कॅरोना लगे हैं मोहब्बत सा 
किसी के छूने से तो छींख से जकड ले ये 
कमसिन मोहब्बत का बुखार हो किसी का 
जो चढ़े तो फिर आग का दरिया सा ही लगे 
पार जिसने भी लगाया जान लेकर ही रहा है 
इंसान के अहंकार को प्रकृति की ललकार है 
बहुत ऊँचा न उड़ रख तो डर किसी का नादाँ 
इंसान और प्रकृति में बढ़ गया अस्मंजसियां  
बिगड़ गया संतुलन प्रकृति और इंसान का 
 कॅरोना ने आज सभी को ज़ब्त कर लिया 
सिमित दीवारों के बीच जैसे कालकोठरियाँ 
फासले बनाये रखें सबसे सभी के दरमियाँ 
शुक्र है उसका जो जान गया और संभल गया 
जो न समझा है न समझेगा अपने गुरुर से 
वो भला कहाँ कभी किसी के काम आएगा
वक़्त हर किसी को परखता है हर पल हमेशा 
तू इंसान हैं, सुधर जा अब भी है तुझे ये मौका 
बिता वक़्त उस घर में उस परिवार संग अपने 
जिसे बनाते-बनाते उम्र गुज़र गयी साथ छूठ गए 
मौका है तू इसे अपना ले कॅरोना के बहाने ही सही 
इंसान तू, ज़मीन का है ज़मीन से ही जुड़ जा संभल जा !

~ फ़िज़ा 

Sunday, March 08, 2020

मेरे नन्हे फ़रिश्ते!


तुम्हारी चंचल अठखेलियों से 
वक़्त अच्छा गुज़र गया जैसे 
याद तो है मुझे, माँ तो हूँ वैसे 
मगर कब तुम संग खेलते ऐसे 
मैं रेह गयी बच्ची तुम संग जैसे 
जाने कब, तुम हुए तेरह के ऐसे 
बस आँखों के सामने ही जैसे  
देखते बढ़ गए वो नन्हे हाथ-पैर 
जल्दी ही छू भी लोगे मेरे काँधे 
और बढ़ भी जाओगे वहां से आगे 
थोड़ा धीरे बढ़ो, थोड़ा खेलने दो 
कुछ देर और मेरा बचपन सेहला दो 
मेरे नन्हे फ़रिश्ते!
तुम रहोगे सदा इस दिल में वही  
नादाँ, भोले, प्यारे सभी को भाते 
नन्हें राही ! जन्मदिन मुबारक हो!!!

~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...