Wednesday, February 14, 2024

जाने क्या हुआ है


 आजकल में जाने क्या हुआ है 

पन्द्रा -सोलवां सा हाल हुआ है 

जाने कैसे चंचल ये मन हुआ है 

बरसात की बूंदों सा थिरकता है 

कहीं एक गीत गुनगुनाता हुआ है 

वहीं दूर से चाँद मुस्कुराता हुआ है 

ये सारी साजिशें किसने रचाई है 

ऐसा गुमान सा तो नहीं कुछ हुआ है

मगर फिर भी सोचूं ये क्या हुआ है 

चलो छोड़ो भी क्या सोचना इतना 

खतरे का साया सा कोई मंडराता है !


~ फ़िज़ा 

Friday, February 02, 2024

ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने

 


ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने 

बचपन को जवानी में ढलते देखा है 

साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !

सुना जॉर्ज अंकल की बेकरी नहीं रही  

वो अयप्पा मंदिर बहुत बड़ा बनगया अब 

पेड़ों के पत्ते झड़कर फिर आ जाते हैं 

दोस्ती में वो वफ़ादारी नहीं है अब 

ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने 

बचपन को जवानी में ढलते देखा है 

साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !!

पहले राम -रहीम साथ बैठते थे 

अब वो आलम बहुत कम देखा है 

खुलकर बोलने का रिवाज़ कम होते देखा है 

सलाम न दुआ बस राम का चलन देखा है 

ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने 

बचपन को जवानी में ढलते देखा है 

साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !!!

वक़्त के साथ सबकुछ तो बदल जाता है 

बचपन बचपन नहीं बस यादों में देखा है 

उम्र के गुज़रते बहुत कुछ सीखा है मैंने 

अपनों को दूर, दूसरों को अपनाते देखा है 

ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने 

बचपन को जवानी में ढलते देखा है 

साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !!!!


~ फ़िज़ा 

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...