Friday, May 28, 2021

मोहब्बत करने लगी हूँ


 

फिर गुस्ताखी करने चली हूँ

खुद से मोहब्बत करने लगी हूँ 


चाँद अब मेरा पीछा करता है 

उस मुये से अब मैं छिपती हूँ 


आहें भरते है दोनों तरफ आग 

डरती हूँ  और मिलना भी चाहूँ


दिल ओ दिमाग से मसरूफ हूँ 

गुनगुनाती फ़िज़ा ख्यालों में घूम हूँ 


~ फ़िज़ा 

Thursday, May 13, 2021

दिल या दिमाग ?


 

आज कॉलेज के दोस्तों संग 

यूँही बातों-बातों में दो पक्ष 

दिल व दिमाग की हुई जंग 

दिल तो है ही दीवाना मेरा 

मैंने तो सिर्फ दिल की सुनी 

जो दिमाग के पक्ष में था वो 

दिल से दिमाग कह रहा था 

साथियों के इमदाद से जो 

बहस-मुबाहिसा हुई दोनों में 

क्या कहना उस वक्त का 

उसे भी हराकर बात बढ़ी 

दोस्तों संग फिर कब होंगे 

आमने-सामने पता नहीं 

पर चैटिंग करते दिन पुराने 

कॉलेज के यादों में चला गया 

उम्मीद पर कायम है दुनिया 

और हम तो मिलेंगे फिर से 

जब हो परिहार महामारी का 

शायद तब भी दिल और दिमाग 

की ही जंग में खुल जायेंगे सब 

बचपन के बंधे गिरह दिल के और 

दिमाग के !


~ फ़िज़ा  

Monday, May 10, 2021

गुमशुदा


 

बाहर सुनहरी धुप है 

मौसम भी ठीक है 

दिल कहीं मायूस 

गुमशुदा हो चला है 

कोई बात नहीं पर 

दिल नासाज़ सा है 

इस उदासी की वजह 

ढूंढ़कर भी नहीं मिला 

शायद बोरियत है 

रोज़ वही दिनचर्या 

वही लोग और सब 

वही घर से बाहर 

और बाहर से अंदर 

बस पंछियों पर है 

ध्यान अटका आजकल 

देखा कल ओक पेड़ पे 

दो घोसलों का निवास 

ख़ुशी हुई कितनों को है 

आसरा इस पेड़ से 

अब तो बस उन्हें देखते 

गुज़रता है वक्त सारा 

काम तो व्यस्त रखे 

मगर दिल कहीं खोया है !


~ फ़िज़ा 

Saturday, May 08, 2021

माँ


 माँ 

इस शब्द में ही 

वो ताकत है जो 

जीवन तो देती है 

मगर उसे सींचकर 

मजबूत बनाती है 

हर सुख-दुःख में 

हौसला तो देती है 

लड़ने की क्षमता 

निडरता और संयम 

का पाठ सिखाती है 

पास नहीं तो दूर से ही 

स्नेह के भण्डार से 

वो मुस्कान लाती है 

एक पल में कान खेंचकर 

दो दूजे पल मुंह में निवाला 

देने वाली माँ ही तो है 

जो सिर्फ अपने बच्चों के लिए 

जगती, फिक्रमंद होकर 

आज भी पूछती है 

खाना खा लिया न?

स्नेह, धैर्य, का बिम्ब 

है वो माँ !


~ फ़िज़ा 

Thursday, May 06, 2021

यादों का सफर


 

आज यूँही यादों के सफर में निकल गयी 

जब हाथ पड़ा पुराने एल्बम पर 

एक से दूजा तीजा मन खो गया 

उन दिनों की यादें जैसे बचपन लौट आया 

वो स्कूल के दिन और उन दिनों की आशाएं 

छोटी परेशानियां पढ़ाई के तो खेल का मैदान 

मानों सारा दुःख उसी मैदान में उंडेलते 

घर से स्कूल और स्कूल से घर का रास्ता 

इतना लम्बा नहीं था कभी जितना आज है 

तब भी प्रकृति से एक रिश्ता बना लिया था 

जहाँ यार-दोस्त हो न हों मगर पक्षियां थे 

नदी-नाले फूल-क्यारियां और अमरुद का पेड़ 

कितने ही बार चढ़कर छत से छलांग लगाया है 

काली-डंडा खेलते-खेलते तो कभी माँ के डर से 

उन दिनों हर डांट में सहारा था टोनी कुत्ते का 

जो चाटकर गाल सेहला भी देता गले लगा भी देता 

किसी थेरपि से कम न था उसका साथ जीवन में 

फिर हर सिरे के अंत समान वो भी गया और हम 

स्कूल से कॉलेज के द्वार तक पहुंचे जैसे-तैसे 

तो सभी को वहीँ पाया और फिर से रेस लगने लगी 

वहां से भागे आज यहाँ हैं और आज भी भाग ही रहे हैं 

आज सब कुछ तो है मगर बचपन तो बचपन है 

उसकी बातें उस पल का एहसास एक खुशबु है 

जो कभी दिल से दिमाग से ओझल नहीं होती 

न उन दिनों की बातें, दोस्त और वो पलछिन 

ऐसे एक सफर में हूँ आज मैं !


~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...