आज कॉलेज के दोस्तों संग
यूँही बातों-बातों में दो पक्ष
दिल व दिमाग की हुई जंग
दिल तो है ही दीवाना मेरा
मैंने तो सिर्फ दिल की सुनी
जो दिमाग के पक्ष में था वो
दिल से दिमाग कह रहा था
साथियों के इमदाद से जो
बहस-मुबाहिसा हुई दोनों में
क्या कहना उस वक्त का
उसे भी हराकर बात बढ़ी
दोस्तों संग फिर कब होंगे
आमने-सामने पता नहीं
पर चैटिंग करते दिन पुराने
कॉलेज के यादों में चला गया
उम्मीद पर कायम है दुनिया
और हम तो मिलेंगे फिर से
जब हो परिहार महामारी का
शायद तब भी दिल और दिमाग
की ही जंग में खुल जायेंगे सब
बचपन के बंधे गिरह दिल के और
दिमाग के !
~ फ़िज़ा
5 comments:
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (15-05-2021 ) को 'मंजिल सभी को है चलने से मिलती' (चर्चा अंक-4068) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
शायद तब भी दिल और दिमाग
की ही जंग में खुल जायेंगे सब
बचपन के बंधे गिरह दिल के और
दिमाग के !---बहुत अच्छी रचना। वाकई इन दिनों इन्हीं के बीच संवाद हो रहा है।
बहुत सुंदर रचना
👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
उम्मीदों पर ही कायम है दुनिया। बहुत सुंदर। उम्दा।
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