Sunday, April 03, 2022

दिल की मर्ज़ी


 

खूबसूरत हवाओं से कोई कह दो 

यूँ भी न हमें चूमों के शर्मसार हों 

माना के चहक रहे हैं वादियों में 

ये कसूर किसका है न पूछो अब 

बहारों की शरारत और नज़ाकत 

कैसे फिर फ़िज़ा न हो बेकाबू अब 

सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने 

दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की

आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह 

फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो 


~ फ़िज़ा 

Friday, April 01, 2022

सेहर


 सुबह की सर्द हवाओं से 

एक हलकी सी मुस्कान 

जैसे सूरज की किरणें 

फैलतीं हैं रौशनी ऐसे 

लगे गुलाबी सा गाल 

एक सादगी और शर्म 

दोनों ही साथ रहकर 

नज़रों को बेहाल करे 

पहली मोहब्बत का 

नज़ारा सेहर दिखाए 


~ फ़िज़ा 

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !

  मैं तो इस पल का राही हूँ  इस पल के बाद कहीं और ! एक मेरा वक़्त है आता जब  जकड लेता हूँ उस पल को ! कौन केहता है ये पल मेरा नहीं  मुझे इस पल ...