सुबह की सर्द हवाओं से
एक हलकी सी मुस्कान
जैसे सूरज की किरणें
फैलतीं हैं रौशनी ऐसे
लगे गुलाबी सा गाल
एक सादगी और शर्म
दोनों ही साथ रहकर
नज़रों को बेहाल करे
पहली मोहब्बत का
नज़ारा सेहर दिखाए
~ फ़िज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
सवेरे-सवेरे मीटिंग में जब सुना कल छुट्टी है क्यूंकि होली है मन ही मन होली के गुब्बारे रंगों से भरे दिल में फोड़ आये मैंने कहा खुद ही से...
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