दिल की मर्ज़ी


 

खूबसूरत हवाओं से कोई कह दो 

यूँ भी न हमें चूमों के शर्मसार हों 

माना के चहक रहे हैं वादियों में 

ये कसूर किसका है न पूछो अब 

बहारों की शरारत और नज़ाकत 

कैसे फिर फ़िज़ा न हो बेकाबू अब 

सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने 

दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की

आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह 

फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो 


~ फ़िज़ा 

Comments

yashoda Agrawal said…
आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 05 अप्रैल 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शुभा said…
वाह!शानदार सृजन ।
सुंदर सराहनीय सृजन ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने
दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की
आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह
फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो

क्या बात, सुन्दर सृजन
Sudha Devrani said…
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर मनमोहक सृजन।
Harash Mahajan said…
सुंदर पेशकश !!
डोरे कोई डाले न डाले, जिधर ढाल होती है लुढ़कना होता है अति सुंदर रचना
Dawn said…
Aap sabhi ka behad shukriya houslafzayi ka. Dhanyavaad

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