दिल की मर्ज़ी
खूबसूरत हवाओं से कोई कह दो
यूँ भी न हमें चूमों के शर्मसार हों
माना के चहक रहे हैं वादियों में
ये कसूर किसका है न पूछो अब
बहारों की शरारत और नज़ाकत
कैसे फिर फ़िज़ा न हो बेकाबू अब
सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने
दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की
आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह
फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो
~ फ़िज़ा
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पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की
आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह
फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो
क्या बात, सुन्दर सृजन
बहुत ही सुन्दर मनमोहक सृजन।