Sunday, April 03, 2022

दिल की मर्ज़ी


 

खूबसूरत हवाओं से कोई कह दो 

यूँ भी न हमें चूमों के शर्मसार हों 

माना के चहक रहे हैं वादियों में 

ये कसूर किसका है न पूछो अब 

बहारों की शरारत और नज़ाकत 

कैसे फिर फ़िज़ा न हो बेकाबू अब 

सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने 

दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की

आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह 

फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो 


~ फ़िज़ा 

9 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 05 अप्रैल 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

शुभा said...

वाह!शानदार सृजन ।

जिज्ञासा सिंह said...

सुंदर सराहनीय सृजन ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' said...

सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने
दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की
आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह
फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो

क्या बात, सुन्दर सृजन

Sudha Devrani said...

वाह!!!
बहुत ही सुन्दर मनमोहक सृजन।

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

Harash Mahajan said...

सुंदर पेशकश !!

विमल कुमार शुक्ल 'विमल' said...

डोरे कोई डाले न डाले, जिधर ढाल होती है लुढ़कना होता है अति सुंदर रचना

Dawn said...

Aap sabhi ka behad shukriya houslafzayi ka. Dhanyavaad

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...