खूबसूरत हवाओं से कोई कह दो
यूँ भी न हमें चूमों के शर्मसार हों
माना के चहक रहे हैं वादियों में
ये कसूर किसका है न पूछो अब
बहारों की शरारत और नज़ाकत
कैसे फिर फ़िज़ा न हो बेकाबू अब
सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने
दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की
आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह
फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो
~ फ़िज़ा
9 comments:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 05 अप्रैल 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह!शानदार सृजन ।
सुंदर सराहनीय सृजन ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने
दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की
आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह
फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो
क्या बात, सुन्दर सृजन
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर मनमोहक सृजन।
वाह
सुंदर पेशकश !!
डोरे कोई डाले न डाले, जिधर ढाल होती है लुढ़कना होता है अति सुंदर रचना
Aap sabhi ka behad shukriya houslafzayi ka. Dhanyavaad
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