Saturday, November 25, 2017

ज़िन्दगी भी कभी थमती नहीं है ...


ज़िन्दगी की शाम जब होती है 
तभी सुबह की तैयारी होती है 

बात सही मानो तभी होती है 
जब मुद्दा समझायी जाती है 

हर एक बात की हद्द होती है 
उसके बाद ज़िद्द ही होती है 

वक़्त बे-वक़्त समझ होती है 
तब तक बहुत देर हो जाती है 

हर शाम के बाद सुबह होती है 
सुबह से ज़िन्दगी शुरू होती है 

समय का क्या, रूकती नहीं है 
ज़िन्दगी भी कभी थमती नहीं है 

चाँद भी अब मुस्कुराता नहीं है 
जाने कितनी रातें आया नहीं है  

पतझड़ के पत्तों की तरह होती है 
नयी पंखुरी फिर निकल आती है 

~ फ़िज़ा 

Saturday, November 18, 2017

मना करें कब ये तैय करें कैसे?

धीरज की भी एक हद होती है 
उसके कुछ कायदे-कानून होते हैं 
किसी के रोंदने की चीज़ नहीं ये 
मना करें कब ये तैय करें कैसे?

जीना है ज़िंदादिली से ये सच है 
क्यों जीना छोड़कर तनाव में रहें?
तनावभरी ज़िन्दगी क्यों?जीने के लिए?
जीने के लिए जीना ये तैय करें कब?

प्रबंधक का शोषण होता नहीं बर्दाश्त
बात को सजकता से लेना आदत सही  
क्यों सहें और कैद करें डर को अंदर?
तोड़ दूँ ये शृंखला? जीना है जब निडर!

~ फ़िज़ा 

Friday, November 10, 2017

मेरा बचपन खो गया कहीं!


आज कहीं मेरा बचपन खो गया 
एक बहुत बड़ा हिस्सा बचपन का 
जिसे संवारने में मामा का प्यार था 
शांत किन्तु गंभीर स्वाभाव के थे 
मगर दिल के प्यारे और गुनी थे 
उनकी दुलारी सबसे प्यारी भांजी 
कोई और नहीं मगर मैं थी!
जहाँ भी रहे हम पास या दूर 
दिल में प्यार की गर्मी नहीं हुई कम 
वक़्त मिले जब भी मिलने आये हम 
फिर एक ऐसा भी वक़्त आया 
अस्वस्थ की खबर ले गया हमें फिर 
वहीं उनसे पुराने दिनों की यादों को 
संग लिए दिल में मिलने चले थे 
खुश था दिल वक़्त बे वक़्त ही सही 
नज़रों के सामने थे तो सही मगर 
ज़िन्दगी का भी एक ऐसा खेल है 
जब सब कुछ अच्छा हो ऐसा लगे 
तभी उसकी चाल बेहाल करे !
आज विदाई का दिन है ऐसा 
कहा जब मुझ से सवेरे सवेरे 
दिल एक पल के लिए हो गया 
बोझल, मेरा बचपन खो गया कहीं!
अब तो बस रहा गयीं यादें जो 
सताएंगी हमेशा मुझे!

~ फ़िज़ा 

Thursday, November 02, 2017

तुमसे बेहतर हम यहाँ ...!


शुष्क हवा में विचरण करते 
एक पंछी ने पुछा मुझ से 
ऐसा सुनने में आया है कब से 
बँधे हैं पैर खुले हैं हाथ तुम्हारे?
लिखना-पढ़ना सब जानते हो 
स्वतंत्र मन से कुछ नहीं करते!

सच बोलने और लिखने से 
मिलते हैं धमकियाँ क़त्ल के 
गाय का मांस खाने से 
गँवा बैठेंगे ज़िंदगियाँ ऐसे 
सरकार जो भी करे और कहे 
आज्ञा का पालन करते जाएं !

परिंदों ने हसंकर कहा 
तुमसे बेहतर हम यहाँ 
उड़ते इस मुक्त गगन में 
आज़ादी से खुशगवार 
तुम तो फिर भी बंधे हो 
सामाजिक बेड़ियों तले !
~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...