शुष्क हवा में विचरण करते
एक पंछी ने पुछा मुझ से
ऐसा सुनने में आया है कब से
बँधे हैं पैर खुले हैं हाथ तुम्हारे?
लिखना-पढ़ना सब जानते हो
स्वतंत्र मन से कुछ नहीं करते!
सच बोलने और लिखने से
मिलते हैं धमकियाँ क़त्ल के
गाय का मांस खाने से
गँवा बैठेंगे ज़िंदगियाँ ऐसे
सरकार जो भी करे और कहे
आज्ञा का पालन करते जाएं !
परिंदों ने हसंकर कहा
तुमसे बेहतर हम यहाँ
उड़ते इस मुक्त गगन में
आज़ादी से खुशगवार
तुम तो फिर भी बंधे हो
सामाजिक बेड़ियों तले !
~ फ़िज़ा
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