Tuesday, April 12, 2016

कुछ ख्वाब देखे रखे सिरहाने


कुछ ख्वाब देखे रखे सिरहाने 
कुछ दिनों बाद फिर लगे लरजने 
कुछ-कुछ है याद रूमानी बातें 
वो सुलझी हुई लटें और बिखरे बादल  
वो पानी का बरसना ठंड से सिमटना 
साँसों की गर्मी और फिर रूमानी हो जाना 
कैसे धुंधले हैं यादें जो कभी रखे थे सिरहाने 
लगे कुछ गिले जुल्फों के तले आज 
याद आये वो पल भी गुदगुदाने के बहाने 
कुछ नज़रें मिलीं कुछ यादें संजोए 
फिर निकल पड़ी लहरों को सजाने 
मतवाले चंचल बेज़ुबान दिल 

~ फ़िज़ा 

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