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करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

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  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में  उनका खेल देखने वाले हैं कम  ! अन्य हर स्तर पर है वो आगे मगर  करे भिन्नता अपने ही वर्ग से ! जहाँ समानता की बात करते हैं  वहीं पुरुषों को नीचा दिखाते हैं ! दोनों को कब हम बराबर देखेंगे  तराज़ू में कभी ये तो वो भारी है ! आओ मिलके करें ये प्रण अब से  करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष ! मगर ये भी न भूलें स्त्री को अभी  आना है और आगे उसे बढ़ने दो ! ~ फ़िज़ा 

आज़ादी !

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उसकी आँखों से सब बयां था  वो चीख चीख कर कहा रही थीं  आज़ादी आज़ादी चाहिए आज़ादी  हर रीति-रिवाज़ों से,  आज़ादी ! नौकरी और घर की चाकरी से  आज़ादी ! बच्चों से उनकी जिम्मेदारियों से  आज़ादी ! रोज़-रोज़ के बिलों से  आज़ादी ! इस दिल से भी चाहिए  आज़ादी ! सब रिश्तों से भी  आज़ादी ! इंसान न समझे उस समाज से  आज़ादी ! बस हुआ सभी से अब  आज़ादी ! फिर भी उसके हाथ फौलादी  करते रहे परिश्रम आखिर तक  सिर्फ चाहने से कहाँ मिले हैं  आज़ादी? ~ फ़िज़ा 

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस

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बच्ची हूँ नादाँ भी शायद  तब तक जब तक देखा नहीं  और देखा भी तो क्या देखा  सिर्फ अत्याचार और कुछ नहीं  कभी बात-बात पर टोका-तानी  तो कभी ये कहना लड़की हो तुम  बात-बात पर दायरे में रखना  कहकर बस में नहीं तेरे जानी  तुम लड़की हो तुमसे नहीं होनी  बरसों का ये रिवाज़ यूँही बनी  और हर पीढ़ी ये सोच चुप रही  है रीती यही है निति चुप रहो  लड़की में वाक़ई है कुछ बात  जो वो कुछ भी नहीं कर सकती  वक्त आया है भ्रम तोड़ने का  इतिहास गवाह है पन्ने -पन्ने का  नारी में है जो बात शायद वो सही है  आदमियों से कुछ खास वोही है  जो निडर, कोमल शालीन सही  मौका लेकर दिखलाये रंग नया  तोड़ दो भेद-भाव का ये ज़ंजीर  समाज में चलना कदम बढ़ाये  एक साथ और एक समान  चाहे फिर वो हो नर या नारी ! ~ फ़िज़ा 

काली की शक्ति हूँ तो ममता माँ की!

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जलता तो मेरा भी बदन है  जब सुलगते अरमान मचलते हैं  जब आग की लपटों सा कोई  झुलसकर सामने आता है तब  आग ही निकलता है अंदर से मेरे  सिर्फ एक वस्तु ही नहीं मैं श्रृंगार की  के सजाकर रखोगे अलमारी में  मेरे भी खवाब हैं कुछ करने की  हर किसी को खेलने की नहीं मैं खिलौना  हर किसी के अत्याचार में नहीं है दबना  कदम से कदम बढ़ाना है मेरा हौसला  रखो हाथ आगे गर मंजूर है ये चुनौती  समझना न मुझे कमज़ोर गर हूँ मैं तुमसे छोटी  काली की शक्ति हूँ तो ममता माँ की  रंग बदलते देर नहीं गर तुम जताओ अपनी  मर्दानगी !!! ~ फ़िज़ा