करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

 


ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है 

असंतुलन ही इसकी नींव है !

लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में 

भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे !

बिना सहायता जान लड़ायें खेल में 

उनका खेल देखने वाले हैं कम  !

अन्य हर स्तर पर है वो आगे मगर 

करे भिन्नता अपने ही वर्ग से !

जहाँ समानता की बात करते हैं 

वहीं पुरुषों को नीचा दिखाते हैं !

दोनों को कब हम बराबर देखेंगे 

तराज़ू में कभी ये तो वो भारी है !

आओ मिलके करें ये प्रण अब से 

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

मगर ये भी न भूलें स्त्री को अभी 

आना है और आगे उसे बढ़ने दो !


~ फ़िज़ा 


Comments

MANOJ KAYAL said…
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन
Dawn said…
Manoj ji aapka bahut bahut dhanyawaad, is kriti ko sarahne ke liye, abhar

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