Tuesday, March 05, 2024

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

 


ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है 

असंतुलन ही इसकी नींव है !

लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में 

भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे !

बिना सहायता जान लड़ायें खेल में 

उनका खेल देखने वाले हैं कम  !

अन्य हर स्तर पर है वो आगे मगर 

करे भिन्नता अपने ही वर्ग से !

जहाँ समानता की बात करते हैं 

वहीं पुरुषों को नीचा दिखाते हैं !

दोनों को कब हम बराबर देखेंगे 

तराज़ू में कभी ये तो वो भारी है !

आओ मिलके करें ये प्रण अब से 

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

मगर ये भी न भूलें स्त्री को अभी 

आना है और आगे उसे बढ़ने दो !


~ फ़िज़ा 


2 comments:

MANOJ KAYAL said...

बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन

Dawn said...

Manoj ji aapka bahut bahut dhanyawaad, is kriti ko sarahne ke liye, abhar

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...