ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है
असंतुलन ही इसकी नींव है !
लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में
भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे !
बिना सहायता जान लड़ायें खेल में
उनका खेल देखने वाले हैं कम !
अन्य हर स्तर पर है वो आगे मगर
करे भिन्नता अपने ही वर्ग से !
जहाँ समानता की बात करते हैं
वहीं पुरुषों को नीचा दिखाते हैं !
दोनों को कब हम बराबर देखेंगे
तराज़ू में कभी ये तो वो भारी है !
आओ मिलके करें ये प्रण अब से
करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !
मगर ये भी न भूलें स्त्री को अभी
आना है और आगे उसे बढ़ने दो !
~ फ़िज़ा
2 comments:
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन
Manoj ji aapka bahut bahut dhanyawaad, is kriti ko sarahne ke liye, abhar
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