Wednesday, August 25, 2021

आज कुछ अजब सा देखा


 आज कुछ अजब सा देखा 

बात तो दोनों की सही थी 

दोनों ही अपने पेट वास्ते 

जीवन का नियम संभाले 

एक तो बिल से निकला 

दूजा पेड़ से उड़कर आया 

निकले दोनों पेट की खातिर 

बस एक ही भरपेट खाया 

जीवन का भी खेल देखो 

किसका अंत व शुरुवात 

जो भोजन बना वो नादान 

जिसने खाया वो भी नादाँ 

प्रकृति के कटघरे में सही 

मगर अपने दिल से पूछूं 

तब भी सही लगा मगर 

जाने वालों का अफ़सोस 

तो ज़रूर होता है मन को 

ऐसा ही कुछ हुआ हम को 

जब से देखा हादसे को  !


~ फ़िज़ा 

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !

  मैं तो इस पल का राही हूँ  इस पल के बाद कहीं और ! एक मेरा वक़्त है आता जब  जकड लेता हूँ उस पल को ! कौन केहता है ये पल मेरा नहीं  मुझे इस पल ...