उसने उस दिन हाथ ही नहीं उठाया
मगर चीज़ें फ़ेंक भी दिया था !
सिर्फ चहरे की जगह ज़मीन आगयी
फिर उस मोड़ पर आगये हम
अकेले आये थे अकेले जायेंगे हम
चाहे धर्म से आये या नास्तिक बनके
जाना तो सभी को एक ही है रस्ते
क्या तेरा है क्या मेरा है
जो आज है बंधन वो कहाँ कल है
जो कल था वो आज हो कहाँ ज़रूरी है
ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वह रात
एक अनजान रात में हसीं हादसे के साथ !
~ फ़िज़ा