ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
Friday, April 30, 2021
सहनशीलता !
Thursday, April 29, 2021
करुणा
आज कहने को सुनने को
क्या रहा जब खबर सब
एक जैसी ही आ रही हो
जहाँ युद्ध में योद्धा लड़ते
आज हर कोई सैनिक बन
एक-दूसरे को सहारा दे रहा
वीर हैं वो जो अपना नहीं पर
कोविद-ग्रस्त मरीज़ों का सोचें
रिश्तेदारों को हटाकर खुद ही
क्रियाकर्म कर उनको विधि से
मुक्त कर रहे हैं
लड़खड़ाते हैं मेरे लफ्ज़ आज
इंसानियत और हैवानियत को
मुकाबला करते देख !
~ फ़िज़ा
Wednesday, April 28, 2021
बीज
बीज बनकर तू गिरा अब पेड़ बन गया
धरा से तू ऊगा है धरा में ही जायेगा
जानकर भी हमेशा देता सभी को साया
आसमां की ऊंचाई भाती उस ओर गया
ऊंचाई तक जाकर तनों को नीचे ले गया
जिस थाली में खाया उसका ऋण चुकाया
इतना ही नहीं अनजानों को भी छाया दिया
एक तू ही है जो इंसान नहीं इंसानियत है
सीखा कर भी इंसान इंसान न बन पाया
ऐ वृक्ष तुझे प्रणाम तू मरकर भी काम आया
अर्थियों के लिए तो ठंड दूर करने के लिए
तू देता रहा हर पल हर दम तू जलता ही रहा !
~ फ़िज़ा
Tuesday, April 27, 2021
काश! कुछ कर पाते...
हर तरफ कोरोना का शोर है
हर तरफ वैक्सीन का भी नारा
कोई ये लो कहता तो कोई वो
कोल्हाहल सा मचा है हर तरफ
कोई मास्क पहनता है कोई नहीं
किसी को बहुत आत्मविश्वास है
कोविड नहीं होगा बस घूम रहे हैं
अपना नहीं औरों का ही सोचते
खुद बेहाल औरों का भी ये हाल
हर दिन साथियों के जाने की खबर
कोई कोविड से ग्रस्त हस्पताल में
मुझे मिले वैक्सीन अपराध सा लगे
मगर मैं फिर भी तो नहीं आज़ाद
दोस्तों के बारे में सोचूं तो उनको
वैक्सीन भी नहीं, दवा-दारू भी नहीं
मौत से लड़ते हुए तो किसी अपने को
कांधा दिए आँखों में आंसू ,लाचारी
धैर्य देते-देते अब खुद धैर्य को थामे
के जाओ नहीं छोड़कर साथ हमारा
तुम नहीं तो कैसे देंगे हम हौसला
एक-एक करके सभी छोड़े जा रहे
इस उम्र में जब सोचा मिलेंगे अब के
याद करेंगे स्कूल के मस्ती वाले दिन
मगर अब श्रद्धांजलि देते थक गए हम
काश! कुछ कर पाते साथियों के लिए !!!!!
~ फ़िज़ा
Monday, April 26, 2021
ख्वाब था..?
उसकी बातें जैसे मखमल के गेंद
सुनकर हो जाये गाल लाल-लाल
वो सामने नहीं फिर भी शर्म आये
वो कुछ भी कहे दिल डोल जाए
उसकी बातें समय को थाम ले यूँ
और ले चला ख्वाबों की सवारी पे
अन्धाधुन सफर पर मैं भी निकली
कुछ यहाँ-वहां की बातें और फिर
हँसकर गुलाल यूँ फेंक गया वो
हाथ से हटाने गयी तो खुल गयी
निंदिया !
ख्वाब था या हकीकत समझे न
सोचकर तो लगा सही हुआ था
फिर सबूत ढूंढा तो कुछ न मिला !
~ फ़िज़ा
Sunday, April 25, 2021
आँखों ही आँखों से
आँखों ही आँखों से मिले थे
दूर-दूर ही थे मगर हर पल
नज़रों से होते रहे नज़दीक
संकोच झुकती नज़रों से
हौसलों से देखती वो नज़रें
कहीं तो एक चिंगारी जली
आँखों के रस्ते प्यार हो गया
देखो तो एक सपना सा लगा
क्यूंकि कोवीड के होते ये सब
मुनासिब ही नहीं नामुमकिन था
लेकिन हमने चेहरे नहीं आँखों से
दिल की गहराइयों को जाना
और आँखों ने सहमति दी
कहा हाँ, मुझे प्यार है तुमसे
दूर थे मगर दिल से जुदा नहीं !
~ फ़िज़ा
Saturday, April 24, 2021
कब होगी वो सुबह...
एक वक़्त ऐसा भी होता था
जब सुबह का इंतज़ार रहता
अब डर लगता है के सुबह हो
तो जाने क्या खबर सुन ने मिले
ज़िन्दगी अप्रत्याशित हो चली है
कोवीड महामारी ने सभी को
असहाय लाचार बेबस मायूस
दूभर कर दिया जीना सभी का
सुरक्षा उसका पालन करने से
कतराते वक़्त आते-आते देखो
जाने-अनजाने लोग गुज़र गए
बिना इलाज़ ही मृत्यु हो गयी
अनगिनत जवान-बूढ़े लोगों की
ये दृश्य सपने में भी न देखा कभी
ऐसा भयानक समय कब थमेगा ?
कब होगी वो सुबह जब ये न होगा ?
~ फ़िज़ा
Friday, April 23, 2021
यादों के सफर में
मुझे फिर कोई ले चलता है मेरे लड़कपन की ओर
बातों से तो कभी तस्वीरों से जिज्ञासा बढ़ता कभी
हालत समझो ज़रा दूर अपने देश से उन दिनों से भी
कभी सोचूं उसी काल में रहा लूँ ज़रा कुछ पल के लिए
फिर इस पल की इन दिनों की सोचूं तो फिर क्या करूँ
काश! पल रुक जाते जब हम चाहते थम जाते वो पल
फिर उस पल में लौट पाते और फिर से चलते वहां से
चलते-चलते पहुँचते आज तक देखते कैसा होता सब
यादों के पल फिर से लड़कपन की ओर खींचते और
हम उसी लड़कपन में नया कोई निर्णय लेकर चलते
यूँहीं ज़िन्दगी के ख्वाब आते-जाते देख खुश हो जाते
~ फ़िज़ा
Thursday, April 22, 2021
बचा लो ...!
हम सब भिन्न-भिन्न प्राणी हैं जगत में
और भिन्न-भिन्न हैं वस्त्र कुछ पहनते
भिन्न-भिन्न है हमारा भोजन और पसंद
जो भी हो सबकुछ मिल जाता हैं यहाँ
भिन्नता कभी नज़दीक तो दूर करती है
हम ये भी भूल जातें हैं के हम कर्ज़दार हैं
फिर भी स्वार्थी और मनमानी करते हैं
काश! हम ये समझते
एक पृथ्वी ही है हमारे बीच जो आम है
क्या उसे हम मिलकर बचा सकते?
~ फ़िज़ा
Wednesday, April 21, 2021
कठपुतली
ज़िन्दगी के खेल भी निराले हैं
अब ज़िंदा हैं तो मौत आनी है
रात है तो दिन को भी होना है
रोने वाला कभी हँसता भी है
धुप-छाँव से भरी ज़िन्दगी है
ऐसे में तय करे कब क्या है
क्या नहीं और क्या होना हैं
सब सोचा मगर होता नहीं है
ज़िन्दगी अपनी डोर उसकी है
~ फ़िज़ा
Tuesday, April 20, 2021
एक एहसास
धड़कनों की आवाज़ सुनो कभी
तारों सी बज उठती है संगीत
यादों से भरी बातें संगीत के बोल
जिन्हें पढ़कर बनाये प्यार की धुन
कभी ये तेज़ बजतीं तो कभी आहें
समुन्दर पर हिंडोलती लहरें जैसे
यादों की उड़नखटोले में बसर कर
दुनिया की सैर कर मानों एक ख़ुशी
जैसे मैं कल फिर से कॉलेज हो आयी
यादें, धड़कन, बातें, मुलाकातें, प्यार
सब कुछ तो था वहां जहाँ पढ़ रहे थे
एक एहसास हवा के झोंके सा आया
~ फ़िज़ा
Monday, April 19, 2021
मोहब्बत ज़िंदा रहती है
उम्र गुज़र रही थी वक़्त के साथ साँझा कर रहे थे
तीस साल गुज़रा हुआ पल उठके सामने आगया
कहीं से कोई उम्मीद या खबर उन दिनों की नहीं थी
तस्वीरों से यादों के लड़ियों से वो पल याद दिलाये
न उसने हमसे कहा और अनजान हम थे आज तक
कोई दिल ही दिल में हम से मोहब्बत कर रहा था
हर अदा पर वो थे फ़िदा मगर हिम्मत न थी कहने की
शर्म-लाज दोनों तरफ थी और बात दिल में ही रह गयी
वक़्त के साथ सबकुछ बदलता है प्रकृति का नियम है
फिर भी दिल में उस मोहब्बत को लिए घूमना अब तक
सही दीवानगी है 'फ़िज़ा' किस अनजानेपन की है सजा
मोहब्बत ज़िंदा रहती है मगर ये सही हो, ये ज़रूरी नहीं !
~ फ़िज़ा
Sunday, April 18, 2021
कभी वो पडोसी हुआ करता था ...
आज सवेरे सवेरे खबर सुनी
कोई जानकार जो रोज़-रोज़
गुड मॉर्निंग और गुड नाईट के
व्हाट्सप्प मेसेजस भेजते कभी
थकता न था, पर आज के बाद
कभी भी वो मैसेज नहीं करेगा
उसे कोरोना ने जब्त कर लिया
कभी वो पडोसी हुआ करता था
जाने-अनजाने कितनी बातें हुईं
जो सिर्फ यादें बनकर रह गयीं
आखिरी वीडियो जो उसने भेजा
वो कोरोना की स्कीम वाली थी
आज की खबर सुनकर ऐसा लगा
मानों वो ये संदेशा दे गया जाते
खुश रहो जिस हाल में भी हो
कोरोना अपनों से दूर ही करेगा
संभलकर रहो दोस्तों ये जानलेवा है
सुरक्षित रहो वर्ना कोरोना आजायेगा
मेरी श्रद्धांजलि इन पंक्तियों द्वारा
अच्छा इंसान था वो जो अब नहीं है !
~ फ़िज़ा
Saturday, April 17, 2021
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं रिया
समय के साथ दिन महीने साल भी
गुज़रते पलों की एक यादगार लड़ी
सजाते-सजाते ये ख्याल भी न रहा
कब कली से फूल बन गयी मेरी रिया
बच्ची तो बच्ची है कहना तो सही भी है
मगर बच्चे तो नहीं मानते या समझते
अरमान तो यही है फूलो-फलो हरदम
ज़िन्दगी जियो मगर अपने दम पर
सही-ग़लत जो दिल को ठीक लगे
वही राह पकड़ना गर फैसला कहीं
चूक गया तो सबक ज़रूर सीखना
पश्चाताप न हो इसका ख्याल रखना
जीवन एक है इसे भरपूर जीना हमेशा
किसी बात पर रोना आये तो आँसू
बहा देना मगर दिल को समझा लेना
गर किसी बात पे हंसी आजाये तो
सबके संग मिलकर हंसना हँसाना
भेद-भाव किसी से न करना और
जाती-धर्म के चक्करों में न पड़ना
दिल से इंसानियत का धर्म पालना
बस इतनी सी है ज़िन्दगी इसीलिए
सोचकर चुनना आंसू और ख़ुशी
कैसे बिताना है और कैसे जीना है
ज़िन्दगी आइस क्रीम की तरह है
समय के साथ हो तो चखने का मज़ा
वर्ना पिघल जाये तो उसे पीने की सजा
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं रिया
भरपूर जियो ज़िन्दगी खुश रहे सदा उन्नति !
~ फ़िज़ा
Friday, April 16, 2021
गुज़रा ज़माना !
याद आता है मुझे गुज़रा ज़माना
गुज़रे पल और गुज़री कहानियां
वो सड़कें वो माहौल और वो लोग
अपने अल्हड़पन पर आता है तरस
तो कभी लगता है वही सब ठीक था
गर वैसा सब नहीं होता तब ज़िन्दगी
वो लोग माहौल तो आज ये न होता
गुज़रे पलों के उपजे बीज जी अब
मैं फसल के रूप में काट रही हूँ ख़ुशी
ज़िन्दगी हसीन है गुज़रे को देख लगता है
यहाँ से देखूं तो सुकून है कोई खेद नहीं
गुज़रा ही सही सार्थक है अपनी जगह
एक एहसास से भरी पोटली है संग मेरे
गुज़रा ज़माना !
~ फ़िज़ा
Thursday, April 15, 2021
ज़िन्दगी
Wednesday, April 14, 2021
फिर एक बार
वसंत बहार पर नूतन वर्ष के दिन
फिर एक बार बचपन याद आया
वो रात ही से माँ का थाली सजाना
सब्जियों, फलों अमलतास से सजे
कुछ धान्य, नारियल,सोना, चांदी
रुपये, नूतन कपडे, कृष्णा की मूर्ति
दिया और आइना सबकुछ थाल में
प्रातः रवि के आने से पहले पापा
मेरी आँखों पर हाथ रख ले जाते
थाल के समक्ष और फिर हाथ हटाते
आईने में अपना चेहरा देखते और
और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते
पापा 'विशु' की शुभकामना देते
और हाथ में कुछ रुपये थमाते
जिसे बड़ों का आशीर्वाद मानकर
उनके पैरों को छूकर गले लगते
कितनी सादगी थी उस ज़िन्दगी में
अमलतास के फूलों ने दिल लुभाया
तब से आजतक बेहद प्रिय हैं मेरे
वसंत ऋतू की इस श्रंखला में मेरा
बचपन फिर एक बार संवर उठा !
नूतन वर्ष की शुभकामनाएं आप सभी को !
~ फ़िज़ा
Tuesday, April 13, 2021
खुशबु बहारों की
बहारों का मौसम है रंगों में घुल जाओ
खुशबु बहारों की यूँ फूलों में रम जाओ
फूलों की बात हुई वहीँ भँवरे भी चले आये
मोहब्बत है मिलन के आसार नज़र आये
गुंजन गूंजने लगे फूलों पर मंडराने लगे
मोहब्बत की दास्ताँ यूँ ही खुशबु फैलाती है
बहारों का मौसम है रंगों में घुल जाओ
खुशबु बहारों की यूँ फूलों में रम जाओ
~ फ़िज़ा
Monday, April 12, 2021
काश!
काश!
काश जब वो पहली बार चिल्लाकर
बात कर रहा था तब रोक लेती उसे
या हाथ उठाकर मारने आया तभी
उसकी मर्ज़ी और मेरी एक नहीं थी
शायद, मुझे जान लेना चाहिए था
की उसका ग़ुस्सा ठीक नहीं है या
उसका तरीका और उसकी सोच
सही नहीं है मेरे हित के लिए काश
काश मैं तब संभल गयी होती तो
मुझे यूँ फ़ना नहीं होना पड़ता था
जान लेना था लोग तमाशा पसंद हैं
अपनी रक्षा आप स्वयं करना है
काश! ये जान लेती और उस पर
भरोसा न कर अपने पर भरोसा
ज्यादा करती तो शायद मैं उन
वीडियो और कैमेरा में सबूत
बनकर नहीं रहा जाती काश!
काश! ये दुनिया जीवन और
उसका का मेहत्व जान पाती
किसी स्त्री पर हाथ उठाने से पहले
उन्हें उनकी अपनी माँ नज़र आती
काश! काश ! काश!
~ फ़िज़ा
Saturday, April 10, 2021
ज़िन्दगी दौड़ रही है !
आज चौबीस साल हो गए घर से निकलकर
कभी सोचा न था कोई और जगह भी घर होगा
इंसान खानाबदोश है पशु-पक्षियों के समान
दाने की खोज में निकल पड़ता है घर से बाहर
मैं साहसिक कार्य हेतु दुनिया की सैर पर निकली
ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव ने सब कुछ सीखा दिया
कहते हैं किताब न मिले तो दुनिया की सैर करो
बहुत कुछ जीवन में ज्ञान यूँ ही मिल जायेगा
किताब भी पढ़ा और दुनिया भी घूमें क्या सीखा?
हर जगह इंसान पांच उँगलियों के समान ही है
सभी जगह अच्छे-बुरे होते हैं बस समझने की बात है
थोड़ा सा संयम और सहानुभूति से सब का हल है
आज ही के दिन टोरंटो की गलियों में पहुंची थी
और आज कैलिफ़ोर्निया में घर बसाकर ज़िन्दगी
दौड़ रही है !
~ फ़िज़ा
Friday, April 09, 2021
दोस्ती
कई दिनों से लूटमार चल रहा था
सोच कर देखा पर पता नहीं चला
एक दिन अचानक चुपके से देखा
दोनों हाथों से बटोर कर खाते हुए
धप! आवाज़ कर उसे भगाया था
बार-बार नज़र रख कर उसे डराया
कुछ दिन बाद देखा उसे पेड़ पर जब
लग रहा था मानों वो शर्मिंदा है खुद से
सोचा भला प्रकृति से क्या भेद-भाव
अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है
मगर आँखों की चमक से मोहित करता है
कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ
छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी !
~ फ़िज़ा
Thursday, April 08, 2021
आरम्भ
आज का दिन ठीक-ठाक ही था
सूरज सर पर मीटिंग धड़ पर था
आहिस्ता से दिन गुज़र ही रहा था
आलास सर चढ़ के चिल्ला रहा था
थोड़ी धुप सेखी पंछी संग खेला था
बहुत काम मगर दिल न मानता था
हट पे अड़ा या जिद्द ही कर रहा था
इस तरह आज मेरा दिन गुज़रा था
सच कहूं तो बहुत अच्छा गुज़रा था
कभी ऐसा भी दिन गुज़ार के देखो
सर्व-संपन्न अपने दिल को सुनो
एक दिन अपने मस्तिष्क को
आराम दो !
~ फ़िज़ा
Wednesday, April 07, 2021
क्या सही?
आज का दिन कैसा गुज़रा ये सोचना सही
मगर खोये वक्त को याद करना कितना सही?
रोज़-रोज़ ये सोचना आज ये करना है आज वो
रोज़ वक्त गुज़र जाने के बाद सोचना कितना सही?
आलस की हवा गुज़र रही है आजकल यहाँ-वहां
बड़े-बड़े काम करने की प्रतिबद्धता कितना सही ?
जीना मरना एक समान ये जीवन का खेल
मगर बची ज़िन्दगी तनाव में बिताना कितना सही?
प्रोत्साहन और उसकी प्रतिक्रिया सभी अच्छा है
ऐसा भी प्रोत्साहन जो आराम न दे कितना सही ?
~ फ़िज़ा
Tuesday, April 06, 2021
कैलिफ़ोर्निया पॉपी
गुल खिले हैं बाग़ में
बाग़ में तो गलियों में
सिर्फ गलियों में नहीं
खेतों खलियानों में
केसरी चादर ओढ़े
दुल्हन सी लगती है
धरती कैलिफ़ोर्निया की
लोग बारातियों जैसे
इर्द-गिर्द घूमें उसके
तस्वीर खेंचके लगाए
फेसबुक में ये कहकर
हम यहाँ भी हो आये
कुछ भी कहा लो यारों
कैलिफ़ोर्निया पॉपी की
बात ही है निराली जैसे
जब खिले फूलों की
यूँ रंगों से भरी फुलवारी
~ फ़िज़ा
Monday, April 05, 2021
चुनाव
सुना है आजकल चुनाव चल रहा है
जानकर मैने भी उत्सुकता जताई
किसे वोट दीजियेगा इस बार आपने
जानते थे के बापू के समर्थक रहे हमेशा
इस बार किसे वोट देने का इरादा है ?
जवाब कुछ इस तरह से आया वहां से
वोट
कोई पार्टी नहीं हम किसी पार्टी के नहीं
अब तक जिसने सब ख्याल रखा हमारा
बिजली पानी और सड़क घर तक लाया
साफ़ सुथरे अस्पताल तो दवाइयाँ मुफ्त
हर मांग पूरी करने वाले को ही वोट देंगे
ढोंग रचाने आएंगे बहुत देंगे कई झांसे
फंसना न मगर अस्थायी एहसानो पर
अब तक जिसने संभाल रखा लोगों को
निस्वार्थ जरूरतें पूरी कर नेतृत्व संभाला
क्यों न मोहर उसी पर लगे इस बार भी
चुनकर लाओ अपना वही मुख्या मंत्री !
~ फ़िज़ा
Saturday, April 03, 2021
पत्थर दिल
हूँ तो बहुत बलवान मगर
दिल भी यहीं कहीं रहता है
नादान सा मुझ सा बावला
मगर चाहता भी क्या प्यार है
यूँ न मेरे हुलिए पर जाओ तुम
दिखता हूँ मैं कठोर मगर सबको
हूँ मैं दिल से अच्छा और बेचारा
प्रकृति की लीला समझो या फिर
किसी के अन्याय का हथोड़ा मारा
दर्द न दिखा सका मुंह खुला रह गया !
~ फ़िज़ा
Friday, April 02, 2021
शहर
मेरा शहर जाने क्यों
आज भी बरसों बाद
नाम कहा सुना जाए तो
दिल में एक अपना सा
एक अपने हक़ से जुड़ा
वो शहर जहाँ बचपन
लड़कपन से जवानी तक
आज भी गलियां सड़कें
मानों राह तखतीं हो जैसे
वाहनों से लेकर इंसान
सभी के चेहरे नज़र आते
अमृता प्रीतम के शहर से
बिलकुल अलग मेरा शहर
जैसे दिल एक पल के लिए
जाना चाहे वहीं फिर एक बार
बस एक बार फिर सबकुछ
वैसा उस शहर सा हो जाये
मेरा शहर जो अब बदल गया !
~ फ़िज़ा
Thursday, April 01, 2021
मन की ख़ुशी
तन मन का सुख है मन से
तन का सुख भी है मन से
जब मन ही न रहे तो सुख कैसे?
तन को मिले सब सुख-समृद्धि
मन को मगर न भाये एक पल भी
जब मन ही न रहे तो सुख कैसे?
मन को मिले सब मन चाहा
तन बेशक है अब मुरझाया
मगर अब भी सुखी है वो काया !
तन से न तोल खुशियां कभी
मन की ख़ुशी हो कितनी भारी
रखती हमेशा है खुशियों की क्यारी !!
फ़िज़ा
इसरायली बंकर
आओ तुम्हें इस खंडहर की कहानी सुनाऊँ एक बार सीरिया ने अंधाधुन धावा बोल दिया इसरायली सिपाही इस धावा के लिए तैयार न थे नतीजा ३६ इसरायली सिपा...

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