Friday, April 30, 2021

सहनशीलता !



दिन का चैन खो गया कहीं 
तो रातों की नींद घूम है कहीं 
कहीं से रोशनी की उम्मीद है 
तो सिर्फ अन्धकार की बातें हैं 
कोई सूरत तो नज़र आये कहीं 
कोई रास्ता हो जहाँ उम्मीद हो 
दुआ न दवा से सिर्फ दिमाग से 
हम-तुम इंटरनेट से साथ निभाएं 
मगर घर से बहार न निकालें अब 
घर पर रहकर पूरी करें दिनचर्या 
कुछ सालों के लिए रहे दूर-दूर 
शायद फिर वो दिन भी आये जब 
गले-मिलकर मस्तियाँ करें सब 
किन्तु अब संयम और सावधानी 
इनका ही उपयोग करें हम सब 
चलो कुछ धैर्य भी साथ रखते हैं 
कुछ अपने लिए कुछ औरों के लिए 

नमन!

~ फ़िज़ा 



 

Thursday, April 29, 2021

करुणा


 

आज कहने को सुनने को 

क्या रहा जब खबर सब 

एक जैसी ही आ रही हो 

जहाँ युद्ध में योद्धा लड़ते 

आज हर कोई सैनिक बन 

एक-दूसरे को सहारा दे रहा 

वीर हैं वो जो अपना नहीं पर 

कोविद-ग्रस्त मरीज़ों का सोचें 

रिश्तेदारों को हटाकर खुद ही 

क्रियाकर्म कर उनको विधि से 

मुक्त कर रहे हैं 

लड़खड़ाते हैं मेरे लफ्ज़ आज 

इंसानियत और हैवानियत को 

मुकाबला करते देख !


~ फ़िज़ा 

Wednesday, April 28, 2021

बीज


 


बीज बनकर तू गिरा अब पेड़ बन गया

धरा से तू ऊगा है धरा में ही जायेगा 

जानकर भी हमेशा देता सभी को साया 

आसमां की ऊंचाई भाती उस ओर गया 

ऊंचाई तक जाकर तनों को नीचे ले गया 

जिस थाली में खाया उसका ऋण चुकाया 

इतना ही नहीं अनजानों को भी छाया दिया 

एक तू ही है जो इंसान नहीं इंसानियत है 

सीखा कर भी इंसान इंसान न बन पाया 

ऐ वृक्ष तुझे प्रणाम तू मरकर भी काम आया  

अर्थियों के लिए तो ठंड दूर करने के लिए 

तू देता रहा हर पल हर दम तू जलता ही रहा !


~ फ़िज़ा 

Tuesday, April 27, 2021

काश! कुछ कर पाते...


 

हर तरफ कोरोना का शोर है 

हर तरफ वैक्सीन का भी नारा 

कोई ये लो कहता तो कोई वो 

कोल्हाहल सा मचा है हर तरफ 

कोई मास्क पहनता है कोई नहीं 

किसी को बहुत आत्मविश्वास है 

कोविड नहीं होगा बस घूम रहे हैं 

अपना नहीं औरों का ही सोचते 

खुद बेहाल औरों का भी ये हाल  

हर दिन साथियों के जाने की खबर 

कोई कोविड से ग्रस्त हस्पताल में 

मुझे मिले वैक्सीन अपराध सा लगे 

मगर मैं फिर भी तो नहीं आज़ाद 

दोस्तों के बारे में सोचूं तो उनको 

वैक्सीन भी नहीं, दवा-दारू भी नहीं 

मौत से लड़ते हुए तो किसी अपने को 

कांधा दिए आँखों में आंसू ,लाचारी 

धैर्य देते-देते अब खुद धैर्य को थामे 

के जाओ नहीं छोड़कर साथ हमारा 

तुम नहीं तो कैसे देंगे हम हौसला 

एक-एक करके सभी छोड़े जा रहे  

इस उम्र में जब सोचा मिलेंगे अब के 

याद करेंगे स्कूल के मस्ती वाले दिन

मगर अब श्रद्धांजलि देते थक गए हम 

काश! कुछ कर पाते साथियों के लिए !!!!!


~ फ़िज़ा 

Monday, April 26, 2021

ख्वाब था..?


 

उसकी बातें जैसे मखमल के गेंद 

सुनकर हो जाये गाल लाल-लाल 

वो सामने नहीं फिर भी शर्म आये 

वो कुछ भी कहे दिल डोल  जाए 

उसकी बातें समय को थाम ले यूँ 

और ले चला ख्वाबों की सवारी पे

अन्धाधुन सफर पर मैं भी निकली 

कुछ यहाँ-वहां की बातें और फिर 

हँसकर गुलाल यूँ फेंक गया वो 

हाथ से हटाने गयी तो खुल गयी 

निंदिया !

ख्वाब था या हकीकत समझे न 

सोचकर तो लगा सही हुआ था 

फिर सबूत ढूंढा तो कुछ न मिला !


~ फ़िज़ा 

Sunday, April 25, 2021

आँखों ही आँखों से


 

आँखों ही आँखों से मिले थे 

दूर-दूर ही थे मगर हर पल 

नज़रों से होते रहे नज़दीक 

संकोच झुकती नज़रों से 

हौसलों से देखती वो नज़रें 

कहीं तो एक चिंगारी जली 

आँखों के रस्ते प्यार हो गया 

देखो तो एक सपना सा लगा 

क्यूंकि कोवीड के होते ये सब 

मुनासिब ही नहीं नामुमकिन था 

लेकिन हमने चेहरे नहीं आँखों से 

दिल की गहराइयों को जाना 

और आँखों ने सहमति दी

कहा हाँ, मुझे प्यार है तुमसे 

दूर थे मगर दिल से जुदा नहीं !


~ फ़िज़ा 

Saturday, April 24, 2021

कब होगी वो सुबह...

 



एक वक़्त ऐसा भी होता था 

जब सुबह का इंतज़ार रहता 

अब डर लगता है के सुबह हो 

तो जाने क्या खबर सुन ने मिले 

ज़िन्दगी अप्रत्याशित हो चली है 

कोवीड महामारी ने सभी को 

असहाय लाचार बेबस मायूस 

दूभर कर दिया जीना सभी का 

सुरक्षा उसका पालन करने से 

कतराते वक़्त आते-आते देखो 

जाने-अनजाने लोग गुज़र गए 

बिना इलाज़ ही  मृत्यु हो गयी 

अनगिनत जवान-बूढ़े लोगों की 

ये दृश्य सपने में भी न देखा कभी 

ऐसा भयानक समय कब थमेगा ?

कब होगी वो सुबह जब ये न होगा ?


~ फ़िज़ा 

Friday, April 23, 2021

यादों के सफर में


 

मुझे फिर कोई ले चलता है मेरे लड़कपन की ओर 

बातों से तो कभी तस्वीरों से जिज्ञासा बढ़ता कभी 

हालत समझो ज़रा दूर अपने देश से उन दिनों से भी 

कभी सोचूं उसी काल में रहा लूँ ज़रा कुछ पल के लिए 

फिर इस पल की इन दिनों की सोचूं तो फिर क्या करूँ 

काश! पल रुक जाते जब हम चाहते थम जाते वो पल 

फिर उस पल में लौट पाते और फिर से चलते वहां से 

चलते-चलते पहुँचते आज तक देखते कैसा होता सब 

यादों के पल फिर से लड़कपन की ओर खींचते और 

हम उसी लड़कपन में नया कोई निर्णय लेकर चलते  

यूँहीं ज़िन्दगी के ख्वाब आते-जाते देख खुश हो जाते 


~ फ़िज़ा 

Thursday, April 22, 2021

बचा लो ...!

 



हम सब भिन्न-भिन्न प्राणी हैं जगत में 

और भिन्न-भिन्न हैं वस्त्र कुछ पहनते 

भिन्न-भिन्न है हमारा भोजन और पसंद 

जो भी हो सबकुछ मिल जाता हैं यहाँ 

भिन्नता कभी नज़दीक तो दूर करती है 

हम ये भी भूल जातें हैं के हम कर्ज़दार हैं 

फिर भी स्वार्थी और मनमानी करते हैं 

काश! हम ये समझते 

एक पृथ्वी ही है हमारे बीच जो आम है 

क्या उसे हम मिलकर बचा सकते?


~ फ़िज़ा 

Wednesday, April 21, 2021

कठपुतली




 

ज़िन्दगी के खेल भी निराले हैं 

अब ज़िंदा हैं तो मौत आनी है 

रात है तो दिन को भी होना है 

रोने वाला कभी हँसता भी है 

धुप-छाँव से भरी ज़िन्दगी है 

ऐसे में तय करे कब क्या है 

क्या नहीं और क्या होना हैं 

सब सोचा मगर होता नहीं है 

ज़िन्दगी अपनी डोर उसकी है 


~ फ़िज़ा 

Tuesday, April 20, 2021

एक एहसास


 

धड़कनों की आवाज़ सुनो कभी 

तारों सी बज उठती है  संगीत 

यादों से भरी बातें संगीत के बोल 

जिन्हें पढ़कर बनाये प्यार की धुन 

कभी ये तेज़ बजतीं तो कभी आहें 

समुन्दर पर हिंडोलती लहरें जैसे 

यादों की उड़नखटोले में बसर कर 

दुनिया की सैर कर मानों एक ख़ुशी 

जैसे मैं कल फिर से कॉलेज हो आयी 

यादें, धड़कन, बातें, मुलाकातें, प्यार 

सब कुछ तो था वहां जहाँ पढ़ रहे थे 

एक एहसास हवा के झोंके सा आया 


~ फ़िज़ा 

Monday, April 19, 2021

मोहब्बत ज़िंदा रहती है


 

उम्र गुज़र रही थी वक़्त के साथ साँझा कर रहे थे 

तीस साल गुज़रा हुआ पल उठके सामने आगया 


कहीं से कोई उम्मीद या खबर उन दिनों की नहीं थी 

तस्वीरों से यादों के लड़ियों से वो पल याद दिलाये 


न उसने हमसे कहा और अनजान हम थे  आज तक

कोई दिल ही दिल में हम से मोहब्बत कर रहा था 


हर अदा पर वो थे फ़िदा मगर हिम्मत न थी कहने की 

शर्म-लाज दोनों तरफ थी और बात दिल में ही रह गयी 


वक़्त के साथ सबकुछ बदलता है प्रकृति का नियम है 

फिर भी दिल में उस मोहब्बत को लिए घूमना अब तक 


सही दीवानगी है 'फ़िज़ा' किस अनजानेपन की है सजा 

मोहब्बत ज़िंदा रहती है मगर ये सही हो, ये ज़रूरी नहीं !


~ फ़िज़ा 

Sunday, April 18, 2021

कभी वो पडोसी हुआ करता था ...


 

आज सवेरे सवेरे खबर सुनी 

कोई जानकार जो रोज़-रोज़ 

गुड मॉर्निंग और गुड नाईट के 

व्हाट्सप्प मेसेजस भेजते कभी 

थकता न था, पर आज के बाद 

कभी भी वो मैसेज नहीं करेगा  

उसे कोरोना ने जब्त कर लिया 

कभी वो पडोसी हुआ करता था 

जाने-अनजाने कितनी बातें हुईं 

जो सिर्फ यादें बनकर रह गयीं 

आखिरी वीडियो जो उसने भेजा 

वो कोरोना की स्कीम वाली थी 

आज की खबर सुनकर ऐसा लगा 

मानों वो ये संदेशा दे गया जाते

खुश रहो जिस हाल में भी हो 

कोरोना अपनों से दूर ही करेगा 

संभलकर रहो दोस्तों ये जानलेवा है 

सुरक्षित रहो वर्ना कोरोना आजायेगा 

मेरी श्रद्धांजलि इन पंक्तियों द्वारा 

अच्छा इंसान था वो जो अब नहीं है !


~ फ़िज़ा 

Saturday, April 17, 2021

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं रिया


 यूँही वक़्त नहीं गुज़र रहा जनाब 

समय के साथ दिन महीने साल भी 

गुज़रते पलों की एक यादगार लड़ी 

सजाते-सजाते ये ख्याल भी न रहा 

कब कली से फूल बन गयी मेरी रिया 

बच्ची तो बच्ची है कहना तो सही भी है 

मगर बच्चे तो नहीं मानते या समझते 

अरमान तो यही है फूलो-फलो हरदम  

ज़िन्दगी जियो मगर अपने दम पर 

सही-ग़लत जो दिल को ठीक लगे 

वही राह पकड़ना गर फैसला कहीं 

चूक गया तो सबक ज़रूर सीखना 

पश्चाताप न हो इसका ख्याल रखना 

जीवन एक है इसे भरपूर जीना हमेशा 

किसी बात पर रोना आये तो आँसू 

बहा देना मगर दिल को समझा लेना 

गर किसी बात पे हंसी आजाये तो 

सबके संग मिलकर हंसना हँसाना 

भेद-भाव किसी से न करना और 

जाती-धर्म के चक्करों में न पड़ना 

दिल से इंसानियत का धर्म पालना 

बस इतनी सी है ज़िन्दगी इसीलिए 

सोचकर चुनना आंसू और ख़ुशी

कैसे बिताना है और कैसे जीना है 

ज़िन्दगी आइस क्रीम की तरह है 

समय के साथ हो तो चखने का मज़ा 

वर्ना पिघल जाये तो उसे पीने की सजा 

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं रिया 

भरपूर जियो ज़िन्दगी खुश रहे सदा उन्नति !


~ फ़िज़ा 

Friday, April 16, 2021

गुज़रा ज़माना !


 

याद आता है मुझे गुज़रा ज़माना 

गुज़रे पल और गुज़री कहानियां 

वो सड़कें वो माहौल और वो लोग 

अपने अल्हड़पन पर आता है तरस 

तो कभी लगता है वही सब ठीक था 

गर वैसा सब नहीं होता तब ज़िन्दगी 

वो लोग माहौल तो आज ये न होता 

गुज़रे पलों के उपजे बीज जी अब 

मैं फसल के रूप में काट रही हूँ ख़ुशी 

ज़िन्दगी हसीन है गुज़रे को देख लगता है 

यहाँ से देखूं तो सुकून है कोई खेद नहीं 

गुज़रा ही सही सार्थक है अपनी जगह 

एक एहसास से भरी पोटली है संग मेरे 

गुज़रा ज़माना !


~ फ़िज़ा 


Thursday, April 15, 2021

ज़िन्दगी

 


ज़िन्दगी कभी एक इत्तेफाक है तो 
कभी-कभी ये सेहमति भी है ज़िन्दगी 
जब ज़िन्दगी ख़त्म सी दीखती है तब 
एक सुराग रौशनी की चली आती है  
ज़िन्दगी दूभर हो सकती है बरसों तक 
संयम और धैर्य राहत को राह दिखाते हैं 
शायद ऐसा ही कुछ हुआ था आज जो 
फुर्ती सी आगयी फिर ज़िन्दगी एक बार 
वाक़ई! ज़िन्दगी एक इत्तेफाक ही तो है !

~ फ़िज़ा 


Wednesday, April 14, 2021

फिर एक बार


 

वसंत बहार पर नूतन वर्ष के दिन  

फिर एक बार बचपन याद आया 

वो रात ही से माँ का थाली सजाना 

सब्जियों, फलों अमलतास से सजे 

कुछ धान्य, नारियल,सोना, चांदी 

रुपये, नूतन कपडे, कृष्णा की मूर्ति 

दिया और आइना सबकुछ थाल में 

प्रातः रवि के आने से पहले पापा 

मेरी आँखों पर हाथ रख ले जाते 

थाल के समक्ष और फिर हाथ हटाते 

आईने में अपना चेहरा देखते और 

और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते 

पापा 'विशु' की शुभकामना देते 

और हाथ में कुछ रुपये थमाते 

जिसे बड़ों का आशीर्वाद मानकर 

उनके पैरों को छूकर गले लगते 

कितनी सादगी थी उस ज़िन्दगी में 

अमलतास के फूलों ने दिल लुभाया 

तब से आजतक बेहद प्रिय हैं मेरे  

वसंत ऋतू की इस श्रंखला में मेरा 

बचपन फिर एक बार संवर उठा !


नूतन वर्ष की शुभकामनाएं आप सभी को !


~ फ़िज़ा 

Tuesday, April 13, 2021

खुशबु बहारों की

 



बहारों का मौसम है रंगों में घुल जाओ 

खुशबु बहारों की यूँ  फूलों में रम जाओ 

फूलों की बात हुई वहीँ भँवरे भी चले आये  

मोहब्बत है मिलन के आसार नज़र आये 

गुंजन गूंजने लगे फूलों पर मंडराने लगे 

मोहब्बत की दास्ताँ यूँ ही खुशबु फैलाती है 

बहारों का मौसम है रंगों में घुल जाओ 

खुशबु बहारों की यूँ  फूलों में रम जाओ 


~ फ़िज़ा 

Monday, April 12, 2021

काश!

 



काश!


काश जब वो पहली बार चिल्लाकर 

बात कर रहा था तब रोक लेती उसे 

या हाथ उठाकर मारने आया तभी 

उसकी मर्ज़ी और मेरी एक नहीं थी 

शायद, मुझे जान लेना चाहिए था 

की उसका ग़ुस्सा ठीक नहीं है या 

उसका तरीका और उसकी सोच 

सही नहीं है मेरे हित के लिए काश 

काश मैं तब संभल गयी होती तो 

मुझे यूँ फ़ना नहीं होना पड़ता था 

जान लेना था लोग तमाशा पसंद हैं 

अपनी रक्षा आप स्वयं करना है 

काश! ये जान लेती और उस पर  

भरोसा न कर अपने पर भरोसा 

ज्यादा करती तो शायद मैं उन 

वीडियो और कैमेरा में सबूत 

बनकर नहीं रहा जाती काश!

काश! ये दुनिया जीवन और  

उसका का मेहत्व जान पाती 

किसी स्त्री पर हाथ उठाने से पहले 

उन्हें उनकी अपनी माँ नज़र आती 

काश! काश ! काश!


~ फ़िज़ा 

Saturday, April 10, 2021

ज़िन्दगी दौड़ रही है !

 



आज चौबीस साल हो गए घर से निकलकर 

कभी सोचा न था कोई और जगह भी घर होगा 

इंसान खानाबदोश है पशु-पक्षियों के समान 

दाने की खोज में निकल पड़ता है घर से बाहर 

मैं साहसिक कार्य हेतु दुनिया की सैर पर निकली 

ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव ने सब कुछ सीखा दिया 

कहते हैं किताब न मिले तो दुनिया की सैर करो 

बहुत कुछ जीवन में ज्ञान यूँ ही मिल जायेगा 

किताब भी पढ़ा और दुनिया भी घूमें क्या सीखा?

हर जगह इंसान पांच उँगलियों के समान ही है 

सभी जगह अच्छे-बुरे होते हैं बस समझने की बात है 

थोड़ा सा संयम और सहानुभूति से सब का हल है 

आज ही के दिन टोरंटो की गलियों में पहुंची थी 

और आज कैलिफ़ोर्निया में घर बसाकर ज़िन्दगी 

दौड़ रही है !


~ फ़िज़ा 

Friday, April 09, 2021

दोस्ती


 

कई दिनों से लूटमार चल रहा था 

सोच कर देखा पर पता नहीं चला 

एक दिन अचानक चुपके से देखा 

दोनों हाथों से बटोर कर खाते हुए 

धप! आवाज़ कर उसे भगाया था 

बार-बार नज़र रख कर उसे डराया 

कुछ दिन बाद देखा उसे पेड़ पर जब 

लग रहा था मानों वो शर्मिंदा है खुद से 

सोचा भला प्रकृति से क्या भेद-भाव 

अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है 

मगर आँखों की चमक से मोहित करता है 

कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ 

छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी !


~ फ़िज़ा 

Thursday, April 08, 2021

आरम्भ


 

आज का दिन ठीक-ठाक ही था 

सूरज सर पर मीटिंग धड़ पर  था 

आहिस्ता से दिन गुज़र ही रहा था 

आलास सर चढ़ के चिल्ला रहा था 

थोड़ी धुप सेखी पंछी संग खेला था 

बहुत काम मगर दिल न मानता था 

हट पे अड़ा या जिद्द ही कर रहा था 

इस तरह आज मेरा दिन गुज़रा था 

सच कहूं तो बहुत अच्छा गुज़रा था 

कभी ऐसा भी दिन गुज़ार के देखो 

सर्व-संपन्न अपने दिल को सुनो 

एक दिन अपने मस्तिष्क को 

आराम दो !


~ फ़िज़ा 

Wednesday, April 07, 2021

क्या सही?


 

आज का दिन कैसा गुज़रा ये सोचना सही 

मगर खोये वक्त को याद करना कितना सही?


रोज़-रोज़ ये सोचना आज ये करना है आज वो 

रोज़ वक्त गुज़र जाने के बाद सोचना कितना सही?


आलस की हवा गुज़र रही है आजकल यहाँ-वहां 

बड़े-बड़े काम करने की प्रतिबद्धता कितना सही ?


जीना मरना एक समान ये जीवन का खेल 

मगर बची ज़िन्दगी तनाव में बिताना कितना सही?


प्रोत्साहन और उसकी प्रतिक्रिया सभी अच्छा है 

ऐसा भी प्रोत्साहन जो आराम न दे कितना सही ?


~ फ़िज़ा 

Tuesday, April 06, 2021

कैलिफ़ोर्निया पॉपी

 


गुल खिले हैं बाग़ में 

बाग़ में तो गलियों में

सिर्फ गलियों में नहीं 

खेतों खलियानों में 

केसरी चादर ओढ़े 

दुल्हन सी लगती है 

धरती कैलिफ़ोर्निया की 

लोग बारातियों जैसे 

इर्द-गिर्द घूमें उसके 

तस्वीर खेंचके लगाए 

फेसबुक में ये कहकर 

हम यहाँ भी हो आये 

कुछ भी कहा लो यारों 

कैलिफ़ोर्निया पॉपी की 

बात ही है निराली जैसे 

जब खिले फूलों की 

यूँ रंगों से भरी फुलवारी 


~ फ़िज़ा 

Monday, April 05, 2021

चुनाव

 



सुना है आजकल चुनाव चल रहा है 

जानकर मैने भी उत्सुकता जताई 

किसे वोट दीजियेगा इस बार आपने 

जानते थे के बापू के समर्थक रहे हमेशा 

इस बार किसे वोट देने का इरादा है ?

जवाब कुछ इस तरह से आया वहां से 

वोट 

कोई पार्टी नहीं हम किसी पार्टी के नहीं 

अब तक जिसने सब ख्याल रखा हमारा 

बिजली पानी और सड़क घर तक लाया 

साफ़ सुथरे अस्पताल तो दवाइयाँ मुफ्त 

हर मांग पूरी करने वाले को ही वोट देंगे 

ढोंग रचाने आएंगे बहुत देंगे कई झांसे 

फंसना न मगर अस्थायी एहसानो पर 

अब तक जिसने संभाल रखा लोगों को 

निस्वार्थ जरूरतें पूरी कर नेतृत्व संभाला 

क्यों न मोहर उसी पर लगे इस बार भी 

चुनकर लाओ अपना वही मुख्या मंत्री !


~ फ़िज़ा 

Saturday, April 03, 2021

पत्थर दिल

 


हूँ तो बहुत बलवान मगर 

दिल भी यहीं कहीं रहता है 

नादान सा मुझ सा बावला 

मगर चाहता भी क्या प्यार है 

यूँ न मेरे हुलिए पर जाओ तुम 


दिखता हूँ मैं कठोर मगर सबको 

हूँ मैं दिल से अच्छा और बेचारा 

प्रकृति की लीला समझो या फिर 

किसी के अन्याय का हथोड़ा मारा 

दर्द न दिखा सका मुंह खुला रह गया !


~ फ़िज़ा 

Friday, April 02, 2021

शहर

 



मेरा शहर जाने क्यों 

आज भी बरसों बाद 

नाम कहा सुना जाए तो 

दिल में एक अपना सा 

एक अपने हक़ से जुड़ा 

वो शहर जहाँ बचपन 

लड़कपन से जवानी तक 

आज भी गलियां सड़कें 

मानों राह तखतीं हो जैसे 

वाहनों से लेकर इंसान 

सभी के चेहरे नज़र आते 

अमृता प्रीतम के शहर से 

बिलकुल अलग मेरा शहर 

जैसे दिल एक पल के लिए 

जाना चाहे वहीं फिर एक बार 

बस एक बार फिर सबकुछ 

वैसा उस शहर सा हो जाये 

मेरा शहर जो अब बदल गया !


~ फ़िज़ा  


Thursday, April 01, 2021

मन की ख़ुशी

 


तन मन का सुख है मन से 

तन का सुख भी है मन से 

जब मन ही न रहे तो सुख कैसे?


तन को मिले सब सुख-समृद्धि 

मन को मगर न भाये एक पल भी 

जब मन ही न रहे तो सुख कैसे?


मन को मिले सब मन चाहा 

तन बेशक है अब मुरझाया 

मगर अब भी सुखी है वो काया !


तन से न तोल खुशियां कभी 

मन की ख़ुशी हो कितनी भारी 

रखती हमेशा है खुशियों की क्यारी !!


फ़िज़ा 

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...