ज़िन्दगी के खेल भी निराले हैं
अब ज़िंदा हैं तो मौत आनी है
रात है तो दिन को भी होना है
रोने वाला कभी हँसता भी है
धुप-छाँव से भरी ज़िन्दगी है
ऐसे में तय करे कब क्या है
क्या नहीं और क्या होना हैं
सब सोचा मगर होता नहीं है
ज़िन्दगी अपनी डोर उसकी है
~ फ़िज़ा
4 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-०४-२०२१) को 'मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे'(चर्चा अंक- ४०४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर
बहुत खूब।
@अनीता सैनी ji, aapka behad shukriya meri rachna ko aapke sankalan mein shamil karne ke liye, Abhar!
@Anuradha chauhan ji, aapka behad shukriya meri rachnana ko pasand karne ke liye, Abhar!
@मन की वीणा ji aapka behad shukriya meri rachna ko pasand karne ke liye, Abhar!
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