फिर एक बार


 

वसंत बहार पर नूतन वर्ष के दिन  

फिर एक बार बचपन याद आया 

वो रात ही से माँ का थाली सजाना 

सब्जियों, फलों अमलतास से सजे 

कुछ धान्य, नारियल,सोना, चांदी 

रुपये, नूतन कपडे, कृष्णा की मूर्ति 

दिया और आइना सबकुछ थाल में 

प्रातः रवि के आने से पहले पापा 

मेरी आँखों पर हाथ रख ले जाते 

थाल के समक्ष और फिर हाथ हटाते 

आईने में अपना चेहरा देखते और 

और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते 

पापा 'विशु' की शुभकामना देते 

और हाथ में कुछ रुपये थमाते 

जिसे बड़ों का आशीर्वाद मानकर 

उनके पैरों को छूकर गले लगते 

कितनी सादगी थी उस ज़िन्दगी में 

अमलतास के फूलों ने दिल लुभाया 

तब से आजतक बेहद प्रिय हैं मेरे  

वसंत ऋतू की इस श्रंखला में मेरा 

बचपन फिर एक बार संवर उठा !


नूतन वर्ष की शुभकामनाएं आप सभी को !


~ फ़िज़ा 

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