आँखों ही आँखों से


 

आँखों ही आँखों से मिले थे 

दूर-दूर ही थे मगर हर पल 

नज़रों से होते रहे नज़दीक 

संकोच झुकती नज़रों से 

हौसलों से देखती वो नज़रें 

कहीं तो एक चिंगारी जली 

आँखों के रस्ते प्यार हो गया 

देखो तो एक सपना सा लगा 

क्यूंकि कोवीड के होते ये सब 

मुनासिब ही नहीं नामुमकिन था 

लेकिन हमने चेहरे नहीं आँखों से 

दिल की गहराइयों को जाना 

और आँखों ने सहमति दी

कहा हाँ, मुझे प्यार है तुमसे 

दूर थे मगर दिल से जुदा नहीं !


~ फ़िज़ा 

Comments

Meena Bhardwaj said…
बहुत सुन्दर सृजन ।
सुंदर पंक्तियाँ ।
Kamini Sinha said…
सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-4-21) को "भगवान महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं"'(चर्चा अंक-4049) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
SUJATA PRIYE said…
जी आंखों ही आंखों में प्यार हो गया।
अब तो आँखों को ही पढ़ना आना चाहिए ।
बाकी तो मास्क से मुँह ढका रहता ।
बहुत सही 👌
Himkar Shyam said…
बहुत ख़ूब

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