शहर

 



मेरा शहर जाने क्यों 

आज भी बरसों बाद 

नाम कहा सुना जाए तो 

दिल में एक अपना सा 

एक अपने हक़ से जुड़ा 

वो शहर जहाँ बचपन 

लड़कपन से जवानी तक 

आज भी गलियां सड़कें 

मानों राह तखतीं हो जैसे 

वाहनों से लेकर इंसान 

सभी के चेहरे नज़र आते 

अमृता प्रीतम के शहर से 

बिलकुल अलग मेरा शहर 

जैसे दिल एक पल के लिए 

जाना चाहे वहीं फिर एक बार 

बस एक बार फिर सबकुछ 

वैसा उस शहर सा हो जाये 

मेरा शहर जो अब बदल गया !


~ फ़िज़ा  


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