Tuesday, April 27, 2021

काश! कुछ कर पाते...


 

हर तरफ कोरोना का शोर है 

हर तरफ वैक्सीन का भी नारा 

कोई ये लो कहता तो कोई वो 

कोल्हाहल सा मचा है हर तरफ 

कोई मास्क पहनता है कोई नहीं 

किसी को बहुत आत्मविश्वास है 

कोविड नहीं होगा बस घूम रहे हैं 

अपना नहीं औरों का ही सोचते 

खुद बेहाल औरों का भी ये हाल  

हर दिन साथियों के जाने की खबर 

कोई कोविड से ग्रस्त हस्पताल में 

मुझे मिले वैक्सीन अपराध सा लगे 

मगर मैं फिर भी तो नहीं आज़ाद 

दोस्तों के बारे में सोचूं तो उनको 

वैक्सीन भी नहीं, दवा-दारू भी नहीं 

मौत से लड़ते हुए तो किसी अपने को 

कांधा दिए आँखों में आंसू ,लाचारी 

धैर्य देते-देते अब खुद धैर्य को थामे 

के जाओ नहीं छोड़कर साथ हमारा 

तुम नहीं तो कैसे देंगे हम हौसला 

एक-एक करके सभी छोड़े जा रहे  

इस उम्र में जब सोचा मिलेंगे अब के 

याद करेंगे स्कूल के मस्ती वाले दिन

मगर अब श्रद्धांजलि देते थक गए हम 

काश! कुछ कर पाते साथियों के लिए !!!!!


~ फ़िज़ा 

5 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3012...कहा होगा किसी ने ऐसा भी दौर आएगा... ) पर गुरुवार 29 अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

विभा रानी श्रीवास्तव said...

काश
सामयिक सार्थक चित्रण

SANDEEP KUMAR SHARMA said...

गहरी पंक्तियां... और गहरी रचना।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अभी भी नहीं संभल रहे लोग।

Dawn said...

@Ravindra Singh Yadav Ji: Aapka bahut shukriya meri rachna ko aapke charchamanch mein shamil karne ke liye , Abhar!

@ विभा रानी श्रीवास्तव Ji: Aapka behad shukriya meri rachna ko sarahne ka , Abhar!

@विभा रानी श्रीवास्तव Ji: Aapka bahut dhanyavaad meri rachna ko padhkar sarahne ke liye, Abhar!

@SANDEEP KUMAR SHARMA Ji: Aapka dhanyavaad meri rachna ko padhkar sarahne ke liye, Abhar!

@संगीता स्वरुप ( गीत ) : Isi baat ka dukh hai ke hum apne hi kubuddhi se sarvanash karne baithe hain. Umeed per duniya tiki hai - Abhar!

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...