हम सब भिन्न-भिन्न प्राणी हैं जगत में
और भिन्न-भिन्न हैं वस्त्र कुछ पहनते
भिन्न-भिन्न है हमारा भोजन और पसंद
जो भी हो सबकुछ मिल जाता हैं यहाँ
भिन्नता कभी नज़दीक तो दूर करती है
हम ये भी भूल जातें हैं के हम कर्ज़दार हैं
फिर भी स्वार्थी और मनमानी करते हैं
काश! हम ये समझते
एक पृथ्वी ही है हमारे बीच जो आम है
क्या उसे हम मिलकर बचा सकते?
~ फ़िज़ा
No comments:
Post a Comment