उसकी बातें जैसे मखमल के गेंद
सुनकर हो जाये गाल लाल-लाल
वो सामने नहीं फिर भी शर्म आये
वो कुछ भी कहे दिल डोल जाए
उसकी बातें समय को थाम ले यूँ
और ले चला ख्वाबों की सवारी पे
अन्धाधुन सफर पर मैं भी निकली
कुछ यहाँ-वहां की बातें और फिर
हँसकर गुलाल यूँ फेंक गया वो
हाथ से हटाने गयी तो खुल गयी
निंदिया !
ख्वाब था या हकीकत समझे न
सोचकर तो लगा सही हुआ था
फिर सबूत ढूंढा तो कुछ न मिला !
~ फ़िज़ा
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