उम्र गुज़र रही थी वक़्त के साथ साँझा कर रहे थे
तीस साल गुज़रा हुआ पल उठके सामने आगया
कहीं से कोई उम्मीद या खबर उन दिनों की नहीं थी
तस्वीरों से यादों के लड़ियों से वो पल याद दिलाये
न उसने हमसे कहा और अनजान हम थे आज तक
कोई दिल ही दिल में हम से मोहब्बत कर रहा था
हर अदा पर वो थे फ़िदा मगर हिम्मत न थी कहने की
शर्म-लाज दोनों तरफ थी और बात दिल में ही रह गयी
वक़्त के साथ सबकुछ बदलता है प्रकृति का नियम है
फिर भी दिल में उस मोहब्बत को लिए घूमना अब तक
सही दीवानगी है 'फ़िज़ा' किस अनजानेपन की है सजा
मोहब्बत ज़िंदा रहती है मगर ये सही हो, ये ज़रूरी नहीं !
~ फ़िज़ा
5 comments:
सुन्दर रचना।।।।।।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२१-०४-२०२१) को 'प्रेम में होना' (चर्चा अंक ४०४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
न उसने हमसे कहा और अनजान हम थे आज तक
कोई दिल ही दिल में हम से मोहब्बत कर रहा था
वाह !! बहुत खूब ,सादर नमन आपको
सुन्दर रचना
@पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ji aapka behad shukriya meri rachna ko sarahane ke liye, abhar!
@अनीता सैनी ji shukriya meri rachana ko apne sankalan mein shamil karne ke liye, Abhar!
@Kamini Sinha ji: Shukriya rachana ko pasand kar daad dene ke liye, mohabbat cheez hi aisee hai :D Abhar!
@Onkar Ji, aapka shukriya meri rachana ko sarahane ke liye, dhanyawaad. Abhar!
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