Saturday, April 10, 2021

ज़िन्दगी दौड़ रही है !

 



आज चौबीस साल हो गए घर से निकलकर 

कभी सोचा न था कोई और जगह भी घर होगा 

इंसान खानाबदोश है पशु-पक्षियों के समान 

दाने की खोज में निकल पड़ता है घर से बाहर 

मैं साहसिक कार्य हेतु दुनिया की सैर पर निकली 

ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव ने सब कुछ सीखा दिया 

कहते हैं किताब न मिले तो दुनिया की सैर करो 

बहुत कुछ जीवन में ज्ञान यूँ ही मिल जायेगा 

किताब भी पढ़ा और दुनिया भी घूमें क्या सीखा?

हर जगह इंसान पांच उँगलियों के समान ही है 

सभी जगह अच्छे-बुरे होते हैं बस समझने की बात है 

थोड़ा सा संयम और सहानुभूति से सब का हल है 

आज ही के दिन टोरंटो की गलियों में पहुंची थी 

और आज कैलिफ़ोर्निया में घर बसाकर ज़िन्दगी 

दौड़ रही है !


~ फ़िज़ा 

7 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 12-04 -2021 ) को 'भरी महफ़िलों में भी तन्हाइयों का है साया' (चर्चा अंक 4034) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

रेणु said...

मानव की पलायनवादी प्रकृति ने उसे खानाबदोश बनाया है | अच्छा लिखा आपने कुछ टंकण अशुद्धियों की ओर ध्यान दें | अमेरिका में रहकर हिंदी से प्रेम , मन को छू गया |

जिज्ञासा सिंह said...

सुंदर भावों का अनूठा दर्पण । अच्छी कृति ।

Dawn said...

Ravindra Singh Yadav ji aapka bahut bahut shukriya meri kavita ko apne sankalan mein shamil karne ke liye.

Renu ji aapka bahut shukriya aapne protsahan badhaya aur kavita par tippani bhi di, behad shukdiya !

Jigyasa ji aapka bahut bahut dhanyawaad

Abhar!

Anuradha chauhan said...

भावों की सुंदर अभिव्यक्ति

मन की वीणा said...

हृदय स्पर्शी भावाभिव्यक्ति।

Dawn said...

Anuradha ji bahut bahut dhanyavaad , Abhar!

Veena ji bahut shukriya aapki tippani ka
Abhar!

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...