दोस्ती


 

कई दिनों से लूटमार चल रहा था 

सोच कर देखा पर पता नहीं चला 

एक दिन अचानक चुपके से देखा 

दोनों हाथों से बटोर कर खाते हुए 

धप! आवाज़ कर उसे भगाया था 

बार-बार नज़र रख कर उसे डराया 

कुछ दिन बाद देखा उसे पेड़ पर जब 

लग रहा था मानों वो शर्मिंदा है खुद से 

सोचा भला प्रकृति से क्या भेद-भाव 

अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है 

मगर आँखों की चमक से मोहित करता है 

कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ 

छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी !


~ फ़िज़ा 

Comments

कोमल मन की कोमल अभिव्यक्ति, भावनासिक्त.....
रेणु said…
गिलहरी के प्रति बहुत सुंदर भाव प्रस्तुत किये आपने | अच्छा लगा पढ़कर |हार्दिक शुभकामनाएं
गिलहरी के लिए इतने सुंदर भाव,सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
रेणु said…
कई दिनों से लूटमार चल रहा था -- चल रही थी
अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है -- खाती है

मगर आँखों की चमक से मोहित करता है --- मोहित करती है

कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ
छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी !
छलांग लगाती फुदकती खेलती गिलहरी !---
Jyoti khare said…
भावपूर्ण सृजन
बधाई

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