दोस्ती
कई दिनों से लूटमार चल रहा था
सोच कर देखा पर पता नहीं चला
एक दिन अचानक चुपके से देखा
दोनों हाथों से बटोर कर खाते हुए
धप! आवाज़ कर उसे भगाया था
बार-बार नज़र रख कर उसे डराया
कुछ दिन बाद देखा उसे पेड़ पर जब
लग रहा था मानों वो शर्मिंदा है खुद से
सोचा भला प्रकृति से क्या भेद-भाव
अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है
मगर आँखों की चमक से मोहित करता है
कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ
छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी !
~ फ़िज़ा
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अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है -- खाती है
मगर आँखों की चमक से मोहित करता है --- मोहित करती है
कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ
छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी !
छलांग लगाती फुदकती खेलती गिलहरी !---
बधाई