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नारी आज भी है पिछड़ी,परायी..!

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जो बर्फीले जुल्म में  या काँटों के सेज़ में अन्याय के झोंकों में  भेदभाव की आँधियों में  बातों के कांच की चुभन में  धिक्कार की बारिश में  अत्याचार के बाढ़ में भी  अपना सुकून खोजती हुई  नारी आज भी सेहमी हुई  सिकुड़ी हुई घबराई हुई  संभलते -सँभालते हुए  इस पीढ़ी से उस पीढ़ी तक  सँवारते, बढ़ाते हुए चली आयी  हाय नारी! तेरी अब भी यही है कहानी  जहाँ चाँद में घर खरीदें वहां  नारी आज भी है पिछड़ी,परायी   डराई, हताश, निराश सतायी ! फिर भी कहें सब सुन्दर नारी !! ~ फ़िज़ा 

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस

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बच्ची हूँ नादाँ भी शायद  तब तक जब तक देखा नहीं  और देखा भी तो क्या देखा  सिर्फ अत्याचार और कुछ नहीं  कभी बात-बात पर टोका-तानी  तो कभी ये कहना लड़की हो तुम  बात-बात पर दायरे में रखना  कहकर बस में नहीं तेरे जानी  तुम लड़की हो तुमसे नहीं होनी  बरसों का ये रिवाज़ यूँही बनी  और हर पीढ़ी ये सोच चुप रही  है रीती यही है निति चुप रहो  लड़की में वाक़ई है कुछ बात  जो वो कुछ भी नहीं कर सकती  वक्त आया है भ्रम तोड़ने का  इतिहास गवाह है पन्ने -पन्ने का  नारी में है जो बात शायद वो सही है  आदमियों से कुछ खास वोही है  जो निडर, कोमल शालीन सही  मौका लेकर दिखलाये रंग नया  तोड़ दो भेद-भाव का ये ज़ंजीर  समाज में चलना कदम बढ़ाये  एक साथ और एक समान  चाहे फिर वो हो नर या नारी ! ~ फ़िज़ा 

नारी जाती का कोई सम्मान नहीं है!

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किताबों में पढ़ा था ऐसा भी एक ज़माना था औरत से ही जीवन चलता और घर भी संभलता था ! फिर एक ज़माना वो भी आया नारी शक्ति, नारी सम्मान का एक चलन ऐसा भी आया ऊँचा दर्ज़ा और सम्मान दिया ! फिर भी नारी का ये हाल रहा "अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी आँचल में है दूध, आँखों में पानी" हाड-मांस की वस्तु बनी नारी! फिर ये भी ज़माना आया एक समान एक इंसान का नारा आया जवान-बूढ़े-बच्चे सभी एक समान फिर बलात्कार क्यों स्त्री पर ढाया? मेहनत औरत भी करे, जिम्मेदारी भी ले औरत कंधे से कन्धा मिलाकर चले बस एक ही वजह से वो शिकार बने दरिंदे औरत को हवस की नज़र से देखे ! पढ़ा है बन्दर से इंसान बना पर बन्दर हमसे अक्कलमंद निकला बोलना नहीं सीखा तो क्या हुआ प्यार-मोहब्बत का इज्ज़्हार तो आया ! इंसान अपनी बुद्धि से मात खाया अपने ही लोगों को समझ न पाया औरत को समझने का भाग्य न पाया बन्दर से इंसान दरिंदे का सफर पाया! किसको दोश दें ऐसा वक़्त आया बलात्कारी या उसको आश्रय देने वाला गुनहगारों को सज़ा दें तो क्या दें हर शहर हर गली की कहानी है ! "अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी आँचल में है दूध, आँखों में पानी" मैथिलि जी का लि...

स्त्री को आम इंसानों जैसा जीने देना !

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स्त्री सिर्फ देने का नाम नहीं  कर्म से और कर्तव्य से कम नहीं  हाव-भाव में बेशक तुम सी नहीं फिर भी हर काम में किसी से कम नहीं ! बेटी का रूप लेकर कोई ग़म नहीं  बेटी, बेहन बन फुली न समायी नहीं  दुल्हन बन वो बाबुल को भुलाई नहीं  ससुराल की बनकर रहने में शरमाई नहीं ! प्यार का भण्डार है वो कतराई नहीं  सहारा देना पड़ा देने से घबराई नहीं  मुसीबतों से लड़ने से कभी हारी नहीं  हर काम करने से वो हिचकिचाई नहीं ! बेटी, बेहन, बीवी, बहु, माँ होने से डरी नहीं  काली का रूप लेकर सीख देने से हटी नहीं  स्त्री हर मुसीबत को सहने से झिझकती नहीं  फिर स्त्री को पुरुष जैसी आज़ादी क्यों नहीं ? कुछ लोग उसे खूसबसूरत कहते हैं  कुछ लोग उसे चुड़ैल भी कहते हैं  हर तरह के नाम देकर भी उसे पूजते हैं  स्त्री को भी इंसान क्यों समझते नहीं ? आखिर क्यों समझे इंसान स्त्री को  जब वो सबसे अलग होकर भी अबला है  सीता से लेकर दुर्गा की छवि रखती है  हाँ ! हो सके तो स्त्री को आत्मनिर्भर रखना ! उसे अपने हक़ ...

काली की शक्ति हूँ तो ममता माँ की!

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जलता तो मेरा भी बदन है  जब सुलगते अरमान मचलते हैं  जब आग की लपटों सा कोई  झुलसकर सामने आता है तब  आग ही निकलता है अंदर से मेरे  सिर्फ एक वस्तु ही नहीं मैं श्रृंगार की  के सजाकर रखोगे अलमारी में  मेरे भी खवाब हैं कुछ करने की  हर किसी को खेलने की नहीं मैं खिलौना  हर किसी के अत्याचार में नहीं है दबना  कदम से कदम बढ़ाना है मेरा हौसला  रखो हाथ आगे गर मंजूर है ये चुनौती  समझना न मुझे कमज़ोर गर हूँ मैं तुमसे छोटी  काली की शक्ति हूँ तो ममता माँ की  रंग बदलते देर नहीं गर तुम जताओ अपनी  मर्दानगी !!! ~ फ़िज़ा 

एक दुखियारी बहुत बेचारी

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नारी के कई रूप हैं और एक ऐसा भी रूप है जिसे वो बखूबी निभाती है क्यूंकि नारी हमेशा अबला नहीं होती ! एक सत्य ये भी देखने मिलता है ! एक दुखियारी बहुत बेचारी  किसी काम की नहीं वो नारी  रहती हरदम तंग सुस्त व्यवहारी  हुकुम चलाये जैसे करे जमींदारी  पति कमाए वो उड़ाए रुपये भारी  ईंट -पत्थर से बने मकान को चाहे  आडंबर दुनिया की वो है राजकुमारी  उसके आगे करो तारीफें और किलकारी  उसे तुम लगोगे जान से भी प्यारी  वो खुश रहती हरदम है वो आडंबरी  रहना तुम दूर उससे वर्ना होगी बिमारी  तुम सोच न सको ऐसी दे वो गाली  एक दुखियारी बहुत बेचारी !!!! ~ फ़िज़ा