नारी आज भी है पिछड़ी,परायी..!

जो बर्फीले जुल्म में या काँटों के सेज़ में अन्याय के झोंकों में भेदभाव की आँधियों में बातों के कांच की चुभन में धिक्कार की बारिश में अत्याचार के बाढ़ में भी अपना सुकून खोजती हुई नारी आज भी सेहमी हुई सिकुड़ी हुई घबराई हुई संभलते -सँभालते हुए इस पीढ़ी से उस पीढ़ी तक सँवारते, बढ़ाते हुए चली आयी हाय नारी! तेरी अब भी यही है कहानी जहाँ चाँद में घर खरीदें वहां नारी आज भी है पिछड़ी,परायी डराई, हताश, निराश सतायी ! फिर भी कहें सब सुन्दर नारी !! ~ फ़िज़ा