Friday, April 13, 2018

नारी जाती का कोई सम्मान नहीं है!




किताबों में पढ़ा था
ऐसा भी एक ज़माना था
औरत से ही जीवन चलता
और घर भी संभलता था !
फिर एक ज़माना वो भी आया
नारी शक्ति, नारी सम्मान
का एक चलन ऐसा भी आया
ऊँचा दर्ज़ा और सम्मान दिया !
फिर भी नारी का ये हाल रहा
"अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध, आँखों में पानी"
हाड-मांस की वस्तु बनी नारी!
फिर ये भी ज़माना आया
एक समान एक इंसान का नारा आया
जवान-बूढ़े-बच्चे सभी एक समान
फिर बलात्कार क्यों स्त्री पर ढाया?
मेहनत औरत भी करे, जिम्मेदारी भी ले
औरत कंधे से कन्धा मिलाकर चले
बस एक ही वजह से वो शिकार बने
दरिंदे औरत को हवस की नज़र से देखे !
पढ़ा है बन्दर से इंसान बना पर
बन्दर हमसे अक्कलमंद निकला
बोलना नहीं सीखा तो क्या हुआ
प्यार-मोहब्बत का इज्ज़्हार तो आया !
इंसान अपनी बुद्धि से मात खाया
अपने ही लोगों को समझ न पाया
औरत को समझने का भाग्य न पाया
बन्दर से इंसान दरिंदे का सफर पाया!
किसको दोश दें ऐसा वक़्त आया
बलात्कारी या उसको आश्रय देने वाला
गुनहगारों को सज़ा दें तो क्या दें
हर शहर हर गली की कहानी है !
"अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध, आँखों में पानी"
मैथिलि जी का लिखा आज भी सही है
नारी जाती का कोई सम्मान नहीं है!
~ फ़िज़ा

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