Monday, April 23, 2018

मंडराते भँवरे ने कहा कुछ ...!




झूमते फूंलों की डालियों पर
मंडराते भँवरे ने कहा कुछ
जाने क्या सुना कलियों ने
मुँह छिपकर हँसने लगीं
फूलों को शर्माते देख
माली डंडी लेकर भागा
भँवरे ने भी कसर नहीं छोड़ी
लगा मंडराने माली के कानों में
वही गीत जिसे सुनकर फूल शर्मायी
कहाँ कोई रोक सका है दीवानों को
जहाँ प्यार है वहां मस्तियाँ भी हैं
बगीया में कुछ इसी तरह का
जश्न फूलों के बीच चल रहा है !

~ फ़िज़ा 
#happypoetrymonth

No comments:

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !

  मैं तो इस पल का राही हूँ  इस पल के बाद कहीं और ! एक मेरा वक़्त है आता जब  जकड लेता हूँ उस पल को ! कौन केहता है ये पल मेरा नहीं  मुझे इस पल ...