मेहकते हैं फूल मुरझाएं तो क्या
गंध फिर भी सुनहरी रेहा जाती है !
कुछ दिनों के लिए ही सही जानिये
अरमान संवर जाते हैं जीने के लिए !
कोई कली जब बाग़ में खिलती है
हों न हों ख्वाईशें जनम ले लेतीं हैं !
आसमान चाहे खिड़की से नज़र आये
उड़ने की चाह उसके भी मन में आये !
ख्वाब को कौन रोक सका है 'फ़िज़ा'
बंद ही नहीं खुली आँख से भी दिखते हैं !
~ फ़िज़ा
गंध फिर भी सुनहरी रेहा जाती है !
कुछ दिनों के लिए ही सही जानिये
अरमान संवर जाते हैं जीने के लिए !
कोई कली जब बाग़ में खिलती है
हों न हों ख्वाईशें जनम ले लेतीं हैं !
आसमान चाहे खिड़की से नज़र आये
उड़ने की चाह उसके भी मन में आये !
ख्वाब को कौन रोक सका है 'फ़िज़ा'
बंद ही नहीं खुली आँख से भी दिखते हैं !
~ फ़िज़ा
#happypoetrymonth
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