ऐ 'फ़िज़ा' चल दूर ही चलें कहीं !



इस जहाँ में कोई किसी का नहीं
पता है तब क्यों आस छोड़ते नहीं

नकारना ही है हर तरह जहाँ कहीं
गिरते हैं क्यों इनके पाँव पर वहीं

कोशिशें लाख करो सहानुभूति नहीं
क्यों इनकी मिन्नतें करते थकते नहीं

मोह-माया से अभी हुए विरक्त नहीं
बंधनों से अपेक्षा भी कुछ हुए कम नहीं

बंधनों को छुटकारा दिला दें कहीं 
वक्त आगया है बुलावा आता नहीं

ऐ 'फ़िज़ा' चल दूर ही चलें कहीं
प्यार न सही नफरत करें भी नहीं !

~ फ़िज़ा 
#happypoetrymonth

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