बस आगे निकलता ही चल ...!


दिल की अस्थिरता भी देखिये न
ठेहरता ही नहीं एक जगह टिक के
आवारा बादलों की तरह भटकता
कभी इस किनारे तो कभी उस पार
जहाँ कहीं मिल जाए प्यार का इज़हार
बेशर्म रुक जाता है आसरे की आस में
ठोकरें खा कर भी न सीखे ऐसा दिल
जाने किस काम का है ये नादान दिल
बंधनों के खुलने तक हो आज़ाद ये दिल
उसी नहर के पानी की धारा समान
जो की बहती रहती है अनजान डगर
दो किनारों के बीच गुज़रती हुई
प्यासों की प्यास बुझाती हुई 
तीव्रगति से रास्ता बनाता तू चल
बस आगे निकलता ही चल !

~ फ़िज़ा

Comments

Popular posts from this blog

हौसला रखना बुलंद

उसके जाने का ग़म गहरा है

दिवाली की शुभकामनाएं आपको भी !